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________________ Ge भगवतीसूत्रे महड्डियत चेा १, नो महज्जुहगतरा चैत्र २' अनएव ते सप्तमपृथिवी नैरथिकाः अार्दिकचैव भवन्ति तेषां पष्ठपृथिव्यपेक्षया अवध्यादि ऋद्देरल्पत्वात्, एवम् ते अतितराचैव भवन्ति तेषां दीप्तेरभावात्, अतएव ते नो तथा महर्द्धिकतथैव भवन्ति, यया पष्ठपृथिवीस्थनैरयिका महर्द्धिकतरा भवन्ति । एवं ते नो, महाबुदिकतरश्चैव भवन्ति, यथा पष्टपृथिवी नैरयिका महाद्युतिकतरा भवन्ति तथा नेत्यर्थः । पष्ठ नारकं प्ररूपयितुमाह-'छट्टीएणं तमाए पुढची ए एगे पंचणे निरयावास समससे पण्णत्ते ' पष्ठ्यां खलु तमायां पृथिव्यम् एकं पञ्चानं निरयावासात सहस्रं - पञ्चभ्यूने कलक्षनियावासाः प्रज्ञप्तम् । ' ते णं नरगा अहे सत्तमाए पुढवीए नरर्हितो नो वहा महंततरा चैत्र १, महावित्थिन्नतरा चैत्र २, क्योंकि इन सातवीं पृथिवी के नैरयिकों की अवध्यादि ऋद्धि छठी पृथिवी के नैरयिकों की अपेक्षा अल्प होती है । इसी प्रकार से ये उनको अपेक्षा दीप्ति का अभाव होने से अल्पदीप्तिवाले होते हैं । इसलिये जैसे छठी पृथिवी के नैरथिक महर्द्धिकतर होते हैं ऐसे ये महद्धिकतर नहीं होते हैं । और न महाद्युतिकतर होते हैं । अप गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं कि हे भदन्त ! छठी पृथिवी जो तमः प्रभा नामकी है उसमें कितने नैरविकावास कहे गये हैं । और यहां के नैरथिकों की क्या हालत है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'छट्टीए णं समाए पुढवीए एगे पंचूणे निरयावास सय सहस्से पत्ते' हे गौतम! छठी तमः प्रभा नाम की जो पृथिवी हैं उसमें पांच कम एक लाख नरकावाल कहे गये हैं 'ते णं णरगा अहे सत्तमाए पुढ़वीए नरएहिंनो નરકના નારકો અઋદ્ધિવાળા અને અપઢીપ્તિવાળા હૈય છે સાતમી નારકના નારકાની અવધિ આદિ ઋદ્ધિ છઠ્ઠી નરકના નારકોની અવધિ આદિ ઋદ્ધિ કરતાં ન્યૂન હાય છે છઠ્ઠી નરકના ન રકાના શરીરની દીપ્તિકરતાં સાતમી નરકના નાકેાની દીપ્તિ ઓછી હાય છે, તેથી જ તેમને અપતર ઋદ્ધિવાળા અને અહપતર દ્વીતિવાળા કહ્યા છે ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્ન-હે ભગવન્ તમ:પ્રભા નામની છઠ્ઠી નરકમાં કેટલા નરકવાસેા કહ્યા છે ? ત્યાં નારકાની હાલત કેવી છે ? भडावीर प्रभुने। उत्तर- "छट्टीएणं तमाए पुढवीए एगे पंचूणे निरयावास सयसहरसे पण्णत्ते" हे गौतम! छुट्टी तमःयला नरम्भां थे લાખ કરતાં चांय न्यून (स्स्स्स्य) नरश्वास छे. " तेणं णरया अहे सत्तमाए पुढवीए -
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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