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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १३ उ० २ सू० १ देव विशेषनिरूपणम् ५५१ 'पंचसु णं भंते ! अणुत्तरविमाणेषु संखेज्जवित्थडे विमाणे एगमपणं केवइया अणुत्तरोववाइया देवा उववज्जंति ? हे भदन्त ! पञ्चसु खलु अनुत्तर विमानेषु संख्ये विस्तृते विमाने एक समये कियन्तः अनुत्तरौपपातिका देवा उपपद्यन्ते ? 'केवइया सुक्कलेस्सा उववज्जति ? पुच्छा तहेत्र' कियन्तः शुक्ललेश्या उपपथन् ? इत्यादि पृच्छा तथैव-पूर्वोक्तरीत्यैव अनसेया, भगवानाह - ' गोयमा ! पंचसु णं अणुत्तरविभाणेसु संखेज्ज वित्थडे अणुत्तर विमाणे एगसमरणं जहण्णेणं एक्कोवा, दोवा, तिन्निवा, उक्को सेणं संखेज्जा अणुत्तरोववाइया देवा उववज्जति, हे गौतम! पञ्चसु खलु अनुत्तरविमानेषु संख्येयविस्तृने अनुतरविमाने एक समये जघन्येन एको वा द्वौ वा, त्रयो वा, उत्कृष्टेन संख्येया अनुत्तरोपपातिका पूछते हैं- 'पंचलु णं ते! अणुत्तरविमाणेषु संखेज्जवित्थडे चिमाणे एगमपणं केवइया अणुत्तरोववाइया देवा उबवज्जति' हे भदन्त | पांच अनुत्तर विमानों में से जो मध्यमविमान संख्यातयोजन का विस्तार बाला कहा गया है उसमें एक समय में कितने अनुत्तरोपपातिक देव उत्पन्न होते हैं ? 'केवहया सुकलेस्ला उवधज्जति ? पुच्छा तदेव' कितने शुक्ररावाले उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न यहां पूर्वोक्त रीति से ही जानना चाहिये । इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! पंचतुणं अणुत्तरविमाणेषु संखेज्जवित्थडे अणुत्तरविमाणे एगए णं जहणणे एको वा दो वा तिन्नि वा उक्कोसेणं संखेज्जा अणुत्तरोववादया देवाउज्जेति ' हे गौतम पांच अनुत्तरविमानों में से जो मध्यमविमान संख्यातयोजनविस्तारवाला कहा गया है उसमें एक समय में कम से कम एक या दो या तीन तक और अधिक से अधिक संख्यात तक गौतम स्वाभीनो प्रश्न-" पंचसु णं भंते! अणुत्तर विमाणेषु संखेज वित्थडे विमाणे एगसमरण- केवइया अणुत्तरोववाइया देवा उववज्र्ज्जति !" है लगवन् ! પાંચ અનુત્તર વિમાનમાંના સખ્યાત ચેાજનના વિસ્તારવાળા અનુત્તર વિમાनभां श्रेष्ठ समयमा टसा अनुत्तरोपयाति देवी उत्पन्न थाय है ? " केवइया सुकलेस्सा उववज्जंति ? पुच्छा तद्देव " तेमां मे सभयभां डेंटला शुम्सलेश्याવાળા દેવા ઉત્પન્ન થાય છે ? ઇત્યાદિ પૂર્વોક્ત પ્રશ્નો અહી પણ સમજી લેવાના છે. भडावीर अलुने! उत्तर- " गोयमा ! पंचसु णं अणुत्तरविमाणेसु संखेज्जवि - त्थडे अणुत्तरविमाणे एगसमक्ष्णं, जहणणेणं एक्को वा, दो वा, तिन्निवा, उक्कोसेणं संखेज्जा अणुतरोववाइया देवा उत्रवज्जंति " हे गौतम! यांथ अनुत्तर विभाનામાંના સખ્યાત ચેાજનના વિસ્તારવાળા મધ્યમ વિમાનમાં એક સમયમાં
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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