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________________ भगवती सूत्रे ૨૪ निर्गच्छति, धर्मस्थां श्रुत्वा गतिगता पर्यंत्, ततो विनयेन शुश्रूषमाणो गौतमः मात्रिपुटः पर्युपासीनः एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत्- 'दो भने ! परमाणु पोग्ला एयओ शाहनंति, एगयत्रो साहण्णित्ता किं भवइ ?' हे भदन्त ! द्वौ परमाणुपुद्गल, एकः - एकतया संन्ये ते संत मनः संघीभूती भरतः इत्यर्थः, एकत - एकता संहत्य - संहतौ भूत्वा किं भवति ? किं स्वरूपं वस्तु भवति ? इति मनः, भगवानाह - 'गोयमा ! दुप्पसिए खं भनई' हे गौतम! द्वौ परमाणुपुद्गल एकत्वेन संहत्य-मिलित्या, हिमदेशिक:- द्वो प्रदेशी अवयव यस्य स तधाविधो भवति, 'से मिज्जपाने दुहा कब्ज, एगयओ परमाणुपोग्गले एनओ परमाणुपोग्नले मइ' सहियकिः कन्धो, भिद्यमानो द्विधा विभागः में महावीर स्वामी पधारे, धर्मकथा सुनने के लिये परिषद् निकली और धर्मकथा सुनकर वह अपने २ स्थान पर गई । इतने में प्रश्न पूछने की अभिलाषा वाले गौतम ने बड़े विलय से दोनों हाथ जोड़कर प्रभु से इस प्रकार पूछा 'दो भंते ! परमाणुपोग्गला एगयओ साहन्नति, एगयओ साहण्णित्ता किं भवइ' भदन्त ! दो पुद्गल परमाणु जब आपस में सङ्घीभूत होते हैं, तब क्या होना है-अर्थात् आपस में सङ्घीभूत (मिले हुए) दो पुल परमाणु किस चीज उत्म करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-' गोपमा' हे गौतम! 'दुप्पएसिए खंधे भवइ' द्विप्रदेशी-दो हैं प्रदेश- अवयव जिसके ऐसा एक स्कंध उनकी संघीभूत अवस्था में उत्पन्न होता है। ' से भिज्नमाणे दुहा कज्जइ, एगयओ परमाणुपोग्गले एगयओं परमाणुपोग्गले भवह ' जब यह द्विप्रदेशी स्कन्ध दो भाग रूप " रायगहे जाव एवं वयासी " गृह नगरमा भहावीर प्रभु यधार्यां તેમને વૠણાનમસ્કાર કરવાને માટે જનસમૂહ નીકળી પડાવંદણાનમસ્કાર કરીને તથા ધર્મકથા સાંભળીને પરિષદ્ વિસર્જિત થઇ ત્યાર ખાદ ધમ તત્ત્વને શ્રવણ કરવાની અભિલાષાવાળા ગૌતમ સ્વામીએ વિનયપૂર્વક અને હાથ लेडीने श्रमाशु भगवान महावीरने या प्रभा प्रश्न पूछयो - " दो भंते ! परमाणु-पोग्ला एयो साइन्नति एगयओ साहण्णित्ता किं भवइ १ " हे भगवन् ! જ્યારે એ પુદ્ગલપરમાણુએના એક બીજાની સાથે સંચાગ થાય છે ત્યારે શુ થાય છે એટલે કે તેમના સચાગથી કઈ ચીજ ઉત્પન્ન થાય છે? बे भवश् भहावीर अलुना उत्तर— 'गोयमा !” हे गौतम! " दुष्पसिए ” એ પુદ્ગલ પરમાણુ એના પરસ્પરના સચેગને લીધે દ્વિપ્રદેશી (એ પ્રદેશवाणी अथवा मे अवयववाणी) मे २४६ उ यन्न थ लय हे " से भिन्नमाणे दुहा फज्जइ, एगयओ परमाणुपाग्गले एगयओ परमाणुपोगले भवइ "
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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