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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१२ ३०४ सू० १ परमाणुपुद्गलनिरूपणम् क्रियते एकत:-एकत्वेन एकभागः परमाणुगुद्गलो भवति, अथ च एकतः-एकतया अपरो भागः परमाणुद्गलो भवति । गौतमः पृच्छति-तिमि भंते ! परमाणुपोग्गला एगयो साउन्नति एमयो साहणित्ता किं भवइ ?' हे भदन्त ! त्रयः परमाणुपुद्गला, एस्तः-एकतया संहन्यन्ते-संहता भवन्ति, एकत्री भवन्ति, इत्यर्थः, एकत:-एकतया संहत्य-संघीभूय मिलित्वेत्यर्थः, किं स्वरूपं वस्तु भवति? भगवानाह-'गोयमा! तिप्पएसिए खंधे भाइ' हे गौतम ! यः परमाणुपद्गगा: संहत्य त्रिपदेशिका बन्यो भवति, 'से मिज्जमाणे दुहाचि तिहावि कज्जा' स त्रिप्रदेशिका स्कन्धः, निधानः, द्विधापि, त्रिधापि क्रियते, तत्र 'दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुरोग्गले, एगयो दुप्पएसिए खंधे भवई' त्रिपदेशिका स्कन्धो में किया जाता है-तत्र एक भाग एक पुगलपरमाणु का होता है और दूसरा भाग भी एक पुदल परमाणु रूप होता है। अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं-'तिनि भंते ! परमाणुपोग्गला एगयो साहन्नंति, एगयओ साहणित्ता किं भवइ' हे भदन्त ! तीन पुद्गलपरमाणु एकत्रित जब होते हैं-तष एकरूप में मिले हुए उन पुद्गल परमाणुओं से क्या वस्तु उत्पन्न होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-' गोयमा! तिप्पएसिए खंधे अवह ' उन एकीभूत हुए तीन पुनल परमाणुओं से त्रिमदेशिक स्कन्ध उत्पन होता है। लेभित्रमाणे दुहापि तिहावि काइ' जब इस त्रिप्रदेशी स्कन्धका विभाग किया जाता हैतब यह दो रूप ले भी विभक्त होता है और तीनरूप से भी विभक्त होता है 'दुना कज्जमाणे एणयओ परमाणुपोग्गले. एगयो दुप्पएसिए જ્યારે તે હિપ્રદેશી સકંધના બે ભાગ પાડવામાં આવે છે ત્યારે એક ભાગ એક પરમાણુ રૂપ હોય છે અને બીજો ભાગ પણ એક પરમાણ ૨૫ જાય છે. गौतम स्वाभान प्रश-" तिमि भंते । परमाणुपोग्गला पगपभो माह मंति, एगयो साहणित्ता किं भवइ ?" मगवन् ! न्यारे ऋy परसपर માણુઓ એક બીજા સાથે એકત્રિત થઈ જાય છે, ત્યારે તે ત્રણ પુદ્ગલપરમાશુઓના સાગથી કઈ વસ્તુ ઉત્પન્ન થાય છે? महावीर प्रसुन उत्तर-" गोयमा !" ३ गीतमा “ तिप्पएसिए बंप भवइ" मेत्र येतात त्रय सभामा १३ मे निशि: ५५ पन्न याय के "ते मिज्जमाणे दहावि तिहावि कज्जद" ल्यारे ते नि. શિક સબંધના વિભાગ પાડવામાં આવે છે, ત્યારે બે વિભાગ પણ પડે છે અને त्रय विमा ५ ५४ . “दुहा कन्जमाणे एगयो परमाणुपोग्गछे, एायो भ०५
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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