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________________ ___ भगवतीसूत्रे स्वयर्यायैः सद्भावपर्यवः, देशः अपरः आदिष्टः परपर्यायैः असदूभावपर्यवः, देशा आदिष्टाः तदुभयपर्यवाः सद्भावासद्भावपर्यवाः तदा चतुष्पदेशिकः स्कन्धो भवति आत्मा च सद्रूपः, नो आत्मा च असदुपः अवक्तव्यानि-आत्मनश्च सदरूपाः नो आत्मनश्च-असद्रूपा इति युगपद् व्यपदेष्टुमशक्यानि १७ । 'देसे आइहे सम्भाव. पज्जवे देसा आइहा असम्भावपज्जवा देसे आइडे तदुभयपज्जवे चउप्पएसिए खंधे आया य नो आयाभो य अवत्तव्यं आयाइ य नो आयाइ य १८' यदा देश: एका आदिष्टः स्वपर्यायैः सद्भावपर्यवः, देशौ द्वौ आदिष्टौ परपर्याय असदभावपर्यवौ, देशः आदिष्टः तदुभयपर्यवः- सद्भावपर्यवासद्भावपर्यवस्तदा चतुष्प्रदेआयाओ य १७ जब अपनी पर्यायों से सदभावपर्यायवाला एकदेश आदिष्ट होता है, परपयायों से असद्भावपर्यायवाला दूसरा देश आदिष्ट होता है, और सद्भावपर्यायवाले और असद्भावपर्यायवाले अनेक देश आदिष्ट होते हैं तब वह चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध कथंचित् सद्रूप, कथंचित् , असदुरूप होता है और अनेक आत्माओं एवं अनात्माओं से वह युगपत् अवाच्य होने के कारण अवक्तव्यल्प भी होता है १७' 'देसे आइटे सम्भावपज्जवे, देसा आइटा असम्भावपउजवा देसे आइहे तदुभयपज्जवे चउप्पएलिए खंधे आया य नो आयामो य अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय १८ जिस समय स्वपर्यायों से सद्भावपर्याय वाला एकदेश आदिष्ट होता है, और परपर्यायों से असदभावपर्याय वाले अनेक देश आदिष्ट होते हैं, और तदुभयपर्यायवाला एकदेश आदिष्ट होता है, तब वह चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध कथंचित् सद्रूप कथंचित् જ્યારે પિતાની પર્યાની અપેક્ષાએ સદ્ભાવ પર્યાયવાળે એકદેશ આદિષ્ટ થાય છે, પરપર્યાની અપેક્ષાએ અસદુભાવ પર્યાયવાળ એકદેશ આદિષ્ટ થાય છે, અને સદ્ભાવપર્યાયવાળા અને અસદુભાવપર્યાયવાળા અનેક દેશે આદિષ્ટ થાય છે, ત્યારે તે ચતુષ્પદેશિક સ્કંધ કથંચિત સદુરૂપ, કથંચિત અસદુરૂપ, અને અનેક આત્માઓ અને તે આત્માઓ વડે એક સાથે અવાગ્યે હોવાને કારણે અવક્તવ્ય રૂપ પણ હોય છે. (१८) "देसे आइटे सम्भावपज्जवे, देसा आइटा असम्भावपज्जवा, देसे आइवे तदुभयपज्जवे चउपएसिए खंधे आया य नो आयाओ य अवत्तव्यं आया. इय नो भायाइय १८७२ समये सपर्यायानी अपेक्षा समाव पर्यायवाणी એકદેશ આદિષ્ટ થાય છે, અને પરપર્યાની અપેક્ષાએ અસદ્દભાવપર્યાયવાળા બે દેશ આદિષ્ટ થાય છે, અને તદુભય પર્યાયવાળો બીજે દેશ આદિષ્ટ
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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