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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १० सू० ३ रत्नप्रभादिविशेषनिरूपणम् ४३७ .. 'देसे आइढे सम्भावपज्जवे देसे आइढे असंभावपज्जवे देसे आइटे तदुभयपज्जवे चउप्पएसिए खंधे आया य नो पाया य अत्तव्वं आयाइ य नो आयाइ य' यदा देशः एक आदिष्टः स्वपर्यायैः असद्भावपर्यवः देशः परः आदिष्टः परपर्यायः असद्भावपर्यवः, देशः अपरः आदिष्टस्तदुभयपर्यवासदभावासदभावपर्यवस्तदा चतुष्पदेशिक: स्कन्धः आत्मा च सद्रूपः नो आत्माच असंदरूपा, अवक्तव्यम्-आत्मा-सद्रूप इति च नो आत्मा असदुरूप इतिचं युगपदव्यपदेष्टुमशक्यम् १६, 'देसे आइहे संभावपज्जवे देसे आइटे असन्मावपज्जवे देसा आइहा तदुभयपज्जवा चउप्पएसिए खंधे भवइ आया य नो आया ये अवतम्बाई आयाओ य नो आया ओ य १७ ' यदा देशः आदिष्टः लेना चाहिये । इस प्रकार असंयोगी तीन और विकसंयोगी १२ बारह ऐसे ये पन्द्रह भंग हुए (१५) अब त्रिकसं योगी चार भंगो को कहते हैं. 'देसे आइहे सम्भावपजवे, देसे आहे असम्भावपनवे देखें आहहेतदुभयपज्जवे, चउप्पएसिए खंधे आया य नो आया य अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय' जिस समय अपनी पर्यायों से सद्भावपर्याय वाला एकदेश आदिष्ट होता है, और जिस समय परपर्यायों से असद्भावपर्यायवाला देश आदिष्ट होता है, तथा सद्भावपर्याय वाला और असद्भावपर्याय वाला देश आदिष्ट होता है, तब चतुष्पदेशिक स्कन्थ सद्रूप, असदुरूप और आत्मा नो आत्मा इन शब्दों से वह युगपत् अवक्तव्य होने के कारण अवक्तव्य होता है १६, 'देसे -आइडे सम्भावपज्जवे देसे आइ अंसम्भावपज्जवे देसा आइहा तदुभयपज्जचा चप्पएसिए खंधे आपा-य नो आया ये अवत्तव्याई आयाओ येणी मायामओय ४" पसाना ११ Min मन मा ४ मां भगान १५ मn થાય છે. તેમને અર્થ પહેલા કહ્યા પ્રમાણે સમજી લેવો. .." देसे आइडे, सम्भावपज्जवे, देसे आइडे असम्भावपज्जवे, देसे आइद्वे तदुभयपज्जवे, चउप्पएसिए खंधे आया य नो आया य अवत्तव्यं आयाइय नो आयाइय१६" (१)यारे यातनी पर्यायानी अपेक्षा सहला पर्यायवाणी એકદેશ આદિષ્ટ થાય છે, અને જ્યારે પરપર્યાની અપેક્ષાએ અસદુભાવપર્યાયવાળે દેશ આદિષ્ટ થાય છે, તથા સદૂભાવ૫ર્યાયવાળ અને અસદુભાવ પર્યાયવાળે દેશ આદિષ્ટ થાય છે, ત્યારે ચતુષ્પદેશિક રકધ સદુરૂપ, અસ દરૂપ અને આત્મા, ને આત્મા આ બે શબ્દ વડે એક સાથે અવકતવ્ય (माय) सामान रथे मतव्य हाय छे. (१७) “देसे आइडे सम्भाव. पन्जवे देसे आइडे असम्भावपज्जवे, देसा आइट्टा तदुभयपज्जवा चउप्पएसिए खंधे भवइ आया य नो आया य अवतव्वाई आयाओ य णो आयाओ य १७"
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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