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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ उ० १० सू० ३ रत्नप्रभादिविशेषनिरूपणम् . ४२५एकदा व्यपदेष्टुमशक्यः१०, 'देसे आइडे असम्भावपज्जवे देसा आइहा तदुभय पज्जवा तिप्पएसिए खंधे नो आया य अवतव्वाइं आयाओ य नो आयाओ य११!" यदा देशः एकः आदिष्टः असद्भावपर्यवः, देशा आदिष्टाः तदुभयपर्यवाः-सद्भावा. सद्भावपर्यवाः तदा त्रिप्रदेशिका स्कन्धो नो आत्मा चासदरूपः अक्तव्यौ आत्मानौ. संदरूपौ नोआत्मानौ-अनात्मानौ अमरूपौ चेति युगपद्व्यपदेष्टुमशक्यौ११, 'देसा आइहा असन्भावाज्जवा देसे आइहे तदुभयपज्जवे, तिप्पएसिए खंधे नो आयाओ य अवत्तव्यं आयाइयनो आयाइय१२' यदा देशा आदिष्टाः असद्भावपर्यवाः, देशा एक: आदिष्टः तदुभयपर्यवा-सद्भाशसभावोभयपर्यव स्तदा त्रिप्रदेशिकः स्कन्धःवह नो आत्मा और प्रवक्तव्य से मिश्र यह दसवां भंग है १० 'देसे आइठे असम्भावपज्जवे, देसा आइहा तदुभयपज्जवा तिप्पएसिए खंधे नो आया य अवत्तन्वाइं आयाओ य नो भायाओ य११' जब वह त्रिपदेशिक स्कन्ध असद्भावपर्याय वाले अपने एकदेश से आदिष्ट होता है, तब वह असद्रूप हो जाता है और जब वह अपने सद्भावपर्याय वाले एवं असद्भावपर्याय वाले अनेक देशों से आदिष्ट होता है, तष, वह सद्रूप असदरूप दोनों पर्याय को एक साथ कहने वाले शब्द के अभाव में अवक्तव्य हो जाता है अतः नो आत्मा एक, अवक्तव्य अनेक, यह ग्यारहवां भंग है ११ । 'देसा आइटा असम्भावपज्जवा; देसे आइट्टे तदुभयपज्जवे तिप्पएसिए खंधे नो आयाओ य अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय' जय त्रिप्रदेशिक स्कन्ध के असद्भावपर्यायवाले अनेकदेश आदिष्ट होते हैं, और जब उसका तदुभयपर्यायवाला एक देश आदिष्ट होता है-तब वह त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अनेक देशों से अस. "देसे आइटे असब्भावपज्जवे देसा आइट्ठा तदुभयपज्जवा तिप्पएसिए खंधे नो. भाया य अवत्तब्वाइं आयाओ य नो आयाओ य ११" यारे नि४ि५ પિતાના અસદુભાવપર્યાયવાળા એકદેશની અપેક્ષાએ આદિષ્ટ થાય છે, ત્યારે તે ત્રિપ્રદેશિક સ્કધ અસદુરૂપ થઈ જાય છે, અને જ્યારે તે પિતાના સદુભાવપર્યાથવાળા અને અસદુભાવપર્યાયવાળા અનેક દેશની અપેક્ષાએ આદિષ્ટ થાય છે, ત્યારે તે સદ્ધરૂપ અસદુરૂપ બને પયીને એક સાથે કહેનારા શબ્દના અભાવને हार म१४तव्य थाई नय छे. (१२) “देषां आइट्ठा असम्भावपज्जवा, देखें आइटे तदुभयपज्जवे तिप्पएसिए खंधे नो आयाओ य अवकव्वं आयाइयनों भायाइय" न्यारे विशि धना मसना पाया। मन शानी અપેક્ષાએ આદિષ્ટ થાય છે, અને જ્યારે તેને તદુભય (સદુરૂપ અસદુરૂપ પર્યાયવાળે એકદેશ આદિષ્ટ થાય છે, ત્યારે તે ત્રિપ્રદેશિક સ્કંધ અસરૂપ भ० ५४
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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