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________________ श्रमे चन्द्रिका टीका श० १२ उ० १० सू० ३ रत्नप्रभादिविशेषनिरूपणम् ४.२३ नो आत्मा इति च युगपद्व्यपदेष्टुमशक्यः अत्रापि त्रयाणामाकाशम देशद्वयावगाव हिल्यापेक्षया उपयंत्रकवचनम् । ७, “देसे आइडे सम्भावपज्जने देसा आइट्ठा तदु-भयपज्जा, तिप्पसिए खंधे आया य अवत्तव्वाइं आयाओ य नो आयाओ य८' यदा देश एक आदिष्टः । विवक्षितः सद्भावपर्ययः, देशा आदिष्टाः विवक्षिताः तदुभयपर्यत्राः सद्भावासद्भावो भयपर्यवः तदा त्रिप्रदेशिक स्कन्धः आत्मा - सद्पश्थ, अवक्तव्यौ - आत्मानौ च सद्रूपौ, नो आत्मानौं अदरूपौ च - इति युगपद्व्यपदेष्टुमशक्यौं ८, ' देसा आह्वा सम्भाव पज्जा देसे आइडे तदुभयपज्जवे विप्पए सिए - खंधे आयाओ च अवृत्तां - आयाइय नो आयाइय ९ यदा देशौ आदिष्टौ सद्भावपर्ययौ देशा एक , " दौरा कहीं नहीं जा सकने के कारण वह अवक्तव्न कोटि में आजानाहै, इसलिये एक आत्मा है, और दूसरा अवक्तव्य है ऐसा यह सातवाँ भंग हुआ- (७) 'देसे आइट्ठे सम्भावपज्जने देखा आइट्ठा तदुभयवज्जया प्रिसिए खधे आयाय अवक्तव्याइं आयाओ य नो आयाओ य' जब वह त्रिदेशिक स्कन्ध अपने एक सद्भावपर्याय वाले देश से आदिष्ट, होता है तब वह सद्रूप वाला है, और जब वह अपने सद्भाव पर्यायों वाल एवं असद्भाव वाले अनेक देशों से आदिष्ट होता है तब वह त्रिप्रं " देशिक स्कन्ध सद्रूप एवं असद्रूप शब्दों द्वारा युगपत् नहीं कहे जा सकने के कारण अवक्तव्य होता है, ऐसे एक आत्मा और अनेक अव ऐसा यह आठवां भंग बनता है ८ । 'देसा आइड्डा सम्भावपज्जवा देसे आहे तदुभयपज्जवे तिप्पएसिए खंधे आयाओ य अवत्तव्यं आया, इय नो आयाइय' जब सद्भावपर्याय वाले देशों को लेकर वह અન્ય દેશથી આદિષ્ટ થાય છે, ત્યારે તેની તે બન્ને પર્યાયે એક સાથે भवाच्य डवाने भरले ते अवतव्य अटियां भावी लय छे. (८) " देखाआइट्ठा, सन्भावपरजवा देखा आइट्टा तदुभयपज्जवा तिप्पएसिए खंधे आया य अवत्तवाई. आयाओ य नो आयाओ य८ " न्यारे ते त्रिदेशि २४६ पोताना અનેક સદ્ભાવ પાઁચાવાળા દેશે વર્ક ધ રૂપે આષ્ટિ થાય છે, ત્યારે તે સરૂપવાળા છે, અને જ્યારે તે પેાતાના સદ્ભાવપર્યાયવાળા અને અસસ્તું: ભાવપાંચાવાળા અનેક દેશેા વડે પ્રદેશ રૂપે આષ્ટિ થાય છે, ત્યારે તે ત્રિપ્રદેશિક 'ધ સદ્ગુરૂપ અને અસરૂપ શબ્દો દ્વારા એક સાથે વાચ્ય નહી. थई शहवाने रो मतव्य होय छे. (ङ) “ देखा - आइट्ठा सम्भावपुज्जवा, - देने, आइहे तदुभयपज्जवे तिप्पुए सिए संधे आयाओ य अवत्त आयाइय नो :
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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