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________________ . . . . . . . भगवतीसूत्र 'वपर्यवौ, तदा त्रिमदेशिका स्कन्धः आत्मा सद्पश्च, नो अत्मानौ असदुपौचर, 'देसा आइहा सम्भावपज्जवा देसे आइढे अपम्भावपज्जवे तिप्पएसिए खंधे आयाओ य नो आया य६' यदा देशौ आदिष्टौं, सद्भावपर्यवी, देशः एका आदिष्टः असद्भावपर्यवः तदा त्रिप्रदेशिका स्कन्धः आत्मानौ सद्पो च, नो आत्माअनात्मा अप्तद्रूपश्च भवति६, 'देसे आइहे सम्भावपज्जवे देसे आइहे तदुभय“पज्जवे तिप्परसिए खंधे आया य पत्तव्यं आयाइय नो आयाइय७' यदा देशः एक आदिष्टः सद्भावपर्यवः देशः आरः आदिष्ट स्तदुमयपर्यवः सद्भावासद्भावो. भयपर्यवः तंदा त्रिमदेशिकः स्कन्धः आत्मा सद्पश्च, अक्तव्यः-आत्मा इति च से आदिष्ट होता है तब वे पर्याय उस में न होने के कारण वह अनेक असदुरूप पर्यायों. वाला है एक ओत्मा और अनेक नो आत्माएँ इस प्रकार का यह पांचवां संग हुभा ५। 'देसा आइट्ठा सम्भावपज्जवा देसे आइडे असम्भावपज्जवे तिप्पएसिए खंधे आयाओ य नो आया यं ६' जब यह त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अपने अनेक सद्भावपर्यायों वाले देशों से आदिष्ट होता है तब वह कथंचित् अनेक सद्पों वाला है, और जब वह असद्भावपर्याय.वाले अपने एकदेश से आदिष्ट होता तब वह असद्रूप वाला है इसप्रकार का अनेक आत्माएँ और एक नो आत्मा यह छठा भंग हुआ ६, 'देसे आटे सम्भावपज्जवे, देसे आइहे तदुअयपज्जवे तिप्पएसिए खधे आया य अवत्तव्वं आयाइय नो आयाइय ७.जयं त्रिप्रदेशिक स्कन्ध अपने सद्भावपर्याय वाले एकदेश से आदि ष्ट होता है-तब वह सद्रूप है और जब वह सद्भावपर्याय वाले दूसरे देश से आदिष्ट होता है तब ये उभय पर्यायें उसकी एक साथ शन्द છે, ત્યારે તે પણ તેમાં ન હોવાને કારણે તે અનેક અસરવાળો હોય છે. (6) " देसा. आइट्टा समावपज्जवा, देसे आइडे असम्भावपज्जवा तिप्पएसिए खंधे आयाओ ये नो आया य६" न्यारे त निशियन तेन भने। સદુભાવ પયાવાળા દેશોની અપેક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે છે ત્યારે તે કથ ચિત્ અનેક સદુરૂપવાળે છે, અને જ્યારે તેને અસદભાવ પર્યાયવાળા એકદેશની અપેક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે છે, ત્યારે તે અસદુરૂપવાળો (७) “देसे आइढे सम्भावपञ्जवे, देसे आइढे तदुभयपनवे तिप्पएसिए खंधे आया य अवत्तव्व आयाइय नो आयाइय७" न्यारे निशि४ धन तना સદુભ વયવાળા એક દેશની અપેક્ષાએ વિચાર કરવામાં આવે છે, ત્યારે તે સંદરૂ૫ છે; અને જ્યારે તે સદભાપર્યાયવાળા અને સંસદભાપર્યાયaith
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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