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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ०५ सू० ३ जीवपरिणामनिरूपणम् १९५ अवण्णा, जाव अफासा, पण्णत्ता, एवं आणागयद्धा दि, एवं सम्बद्धा वि' अतीतादा वि-अतीतकाला, अवर्णा यावत्-अगन्धा, अरसा, अस्पर्शा प्रज्ञप्ता, एवम्अतीताद्धावत , अनागताधा अपि-अनागतकालोऽपि, अवर्णा, अगन्धा, अरसा, अस्पर्शा प्रज्ञप्ता, एवम् अतीताद्धादिवदेव सर्वाद्धा अपि-सर्वकालोऽपि, अवर्णा, अगन्धा, अरसा, अस्पर्शा प्रज्ञासा, एतेषाम् अतीताद्धादिकालत्रयाणामपि अमूर्तत्वेन वर्णादिरहितत्वादिति भावः ॥ २॥ जीवपरिणामवक्तव्यता। मूलम्-'जीवे णं भंते !- गभं वक्कममाणे कइवन्नं, कइगंध, कइरसं, कइफालं परिणाम परिणमइ ? गोंयमा ! पंचवन्नं, दुगंधं पंचरसं अटफासं परिणामं परिणमइ ॥सू०३॥ ___ छाया-जीवः खलु भदन्त ! गर्म व्युत्क्रामन् कतिवर्णम् , कतिगन्धम् , कतिरसं, कतिस्पर्शम् परिणामं परिणमति ? गौतम ! पञ्चवर्णम् , द्विगन्धम् , पश्चरसम् , अष्टस्पर्शम् परिणामं परिणमति ॥मू०३॥ वर्णादि की कही गई हैं। 'तीयद्धा अवण्णा, जाव अफासा, पण्णत्ता, एवं अणागयद्धा वि, एवं सव्वद्धा वि' अतीत-भूतकाल, भी विना वर्णका, विना गंध का, विना रस का और विना स्पर्श का कहा गया है। इसी प्रकार से अनागतकाल भी-भविष्यत् काल भी विना वर्णादि का कहा गया है। अतीताद्धा की तरह सर्वकाल भी विना वर्ण का, विना गंध का, विना रस का और विना स्पर्श का कहा गया है। क्यों कि भूत, भविष्यत् और वर्तमान ये तीनों ही काल अमूर्त कहे गये हैं। अतः अमूर्त होने के कारण इनमें पौगलिशगुण वर्णादिक नहीं होते हैं, उनसे ये रहित होते हैं ।सू० २॥ २स मन २५ विनानी ४डी छ. " तीयद्धा अवण्णा, जाव अफासा, एवं अणागयद्धा वि, एवं सव्वद्धा वि" सूता पण विनाना, सविनानी, રસવિનાને અને સ્પર્શ વિનાને કહ્યું છે એજ પ્રમાણે અનાગત (ભવિષ્ય) કાળને પણ વર્ણ, ગંધ, રસ અને સ્પર્શોથી રહિત કહ્યું છે ભૂતકાળની જેમ સર્વ કાળને પણ વર્ણ, ગંધ, રસ અને સ્પર્શ વિનાને કહ્યો છે, કારણ કે ભૂત, ભવિષ્ય અને વર્તમાન, એ ત્રણે કાળને પણ અમૂર્ત કહ્યા છે. તેઓ અમૂર્ત હેવાને કારણે તેમનામાં પૌલિક ગુણેને સદ્ભાવ સંભવી શક્તા નથી. જરા
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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