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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१२ उ०५ सू०२ प्राणातिपातादिविरमणनिरूपणम् १९३ गंधा, एगवण्णा, एगरसा, दुफासा पन्नत्ता' अस्त्येककानि कानिचित् सर्वद्रव्याणि परमाणुद्रव्यरूपाणि एकवर्णानि, एकगन्धानि, एकरसानि, द्विस्पर्शानि, प्रजातानि, तथा चोक्तं परमाणुद्रव्यमाश्रित्य-"कारणमेव तदन्त्यं, सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । एकरसवर्णगन्धो द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च ॥१॥ इति, स्पर्शद्वयश्च सूक्ष्मसम्बन्धिनाम् चतुर्णा स्पर्शानामन्यवरदविरुद्धं भवति, 'अत्थेगइया सव्वदव्या अवन्ना जाच अफासा पण्णत्ता' अस्त्येककानि कानिचित् सर्वद्रव्याणि-धर्मास्तिकायादिद्रव्याणि अवर्णानि, यावत् अगन्धानि, अरसानि, अस्पर्शानि प्रज्ञप्तानि, गंधोंवाले, पांच रसोवाले और आठ स्पों वाले कहे गये हैं 'अस्थेगइया सव्वदव्वा पंचवण्णा चउफासा, पण्णत्ता' समस्त द्रव्यों में से कितनेक सूक्ष्मपुद्गलद्रव्य पांचवर्णवाले, दो गंधवाले, पांचरसवाले और चार स्पर्शवाले कहे गये हैं। 'अत्थेगइया सव्वदव्वा एगवण्णा एगगंधा, एगरसा दुफासा पन्नत्ता' समस्त द्रव्यों में से पर. माणुरूप पुद्गलद्रव्य एकवर्णवाले, एकगंधवाले, एकरसवाले और दो स्पर्शवाले कहे गये हैं। सो ही कहा है-' एकरसवर्णगंधो, विस्पर्श: कार्यलिङ्गाश्च' परमाणु एकवर्ण, एकगंध एकरस और दो स्पर्शवाला होता है, इसका ज्ञान इनके संयोग से उत्पन्न हुए कार्य से होता है। सूक्ष्म संबंधी चार स्पों में कोई दो अविरुद्धस्पर्श में रहते हैं। 'अस्थे. गड्या सव्वव्वा अवन्ना जाव अफासा पण्णता' तथा समस्त द्रव्यों में से कितनेक द्रव्य-धर्मास्तिकायादिकद्रव्य विना वर्ण के, यावत् विना गंध के, विना रस के और विना स्पर्श के कहे गये हैं। 'एवं सव्व. ami Grय छ. " अत्यंगइया सव्वदव्वा पचवण्णा०, जाव घउफासा पण्णत्ता" સમસ્ત દ્રામાંથી કેટલાક દ્રવ્યને–સૂમ પુદ્ગલ દ્રવ્યોને-પાંચ વર્ણવાળાં, मे गावाजा, पाय सोपणा, मने यार स्प mi xn छ, “अत्येगइया सव्वगंधा, एगगंधा, एगवण्णा, एगरसा, दुफोसा पण्णत्ता', समस्त द्रव्याમાંથી કેટલાક દ્રવ્યને પરમાણુ પુલ રૂપ દ્રવ્યને-એક ગધવાળાં એક રસવાળાં, એક વણવાળા અને બે સ્પર્શવાળાં કહ્યા છે. એજ વાત નીચેના सूत्रादा ०५४त थाय छ-" एकरसवर्णगंधो, द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च " "५२માણુ રસ એક વર્ણ, એક ગંધ, એક રસ અને બે સ્પર્શવાળો હોય છે. તેનું જ્ઞાન તેમના સાગથી ઉત્પન્ન થયેલા કાર્યથી થાય છે.” સૂમસંબધી यार २५शमन मे मविरुद्ध पनि समाव २७ छे. “ अत्यगइया सव्वादया अवण्णा जाव अफामा पण्णत्ता" समस्त द्रव्यमाथा टसा द्रव्याધમસ્તિકાયાદિ દ્રા-વર્ણરહિત, ગંધરહિત, રસરહિત અને સ્પરહિત હોય भ० २५
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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