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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १२ १० १९०४ शड्ड श्रावकचरितनिरूपणम् १९९ संसारकान्तारेऽनुपर्यटति। 'तएणं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमढं सोचा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउन्विग्गा समणं भग महावीरं वंदंति, नमसंति' ततः खलु ते श्रमणोपासकाः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिके-समीपे, एतमर्थ-पूर्वोक्तार्थ क्रोधादीनां कटुविपाकं श्रुत्वा, निशम्य. हृदि अवधार्य भीताः जन्ममरणेभ्य वस्त्रो:-त्रासयुक्ताः नरकादिदुःखेभ्यः, त्रासिता.घोरसंसारभयोद्विग्नाः-भवभयविह्वलाः सन्तः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते; नमस्यन्ति, 'वंदित्ता, नमंसित्ता, जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छंति' वन्दित्वा, नमस्यित्वा, यत्रैव शङ्खः श्रमणोपासकः आसीत , तत्रैव उपागच्छन्ति, 'उवागच्छित्ता संखं समणोवासगं वंदति, नमसंति,' उपागत्य, शङ्ख श्रमणोपासक करके उन्हें बांधता है। 'तएणं ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयम सोच्चा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभविग्गा समणं भगवं महावीर वंदंति, नमसंति' इसके याद उन श्रमणोपासकों ने कषाय करने वाले जीवों की क्या स्थिति होती है ऐसा कथन श्रमण भगवान् महावीर के मुख से सुना-तब वे क्रोधादि कषायों के कटुक विपाक को हृदय में अवधारण करके जन्ममरण से बहुत डर गये नरकादिकों के दुःखों से त्रस्त हो गये घोर संसारपरिभ्रमण से त्रास को प्राप्त हो गये इस प्रकार संसारभय से विहल पने हुए उन श्रमणोपासकों ने भगवान महावीर को वन्दना की, उन्हे नमः स्कार किया 'वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छंति' वन्दना नमस्कार करके फिर वे जहां श्रमणोपासक शंख __"तएण ते समणोवासगा समणस्स भगवओ महावीरस्स अतिय एयमः सोच्चा निसम्म भीया तत्था तसिया संसारभउव्विग्गा समण भगव' महावीर वंदति नमसंति" पाययुत वानी वी स्थिति थाय छ १ मे श्रम सस. વાન મહાવીરને મુખે શ્રવણ કરીને, અને ક્રોધાદિ કષાયના ભયંકર વિપાકને હૃદયમાં અવધારણ કરીને, તેઓ જન્મમરણના ભયથી વિઠ્ઠલ થઈ ગયા, નરકાદિને દુઃખના વિચાથી ત્રાસી ગયા, અને ઘર સંસારાટવીમાં પરિભ્રમણ કરવું પડશે એવું જાણીને વ્યાકુળ બની ગયા આ પ્રકારે સંસારભયથી વિહલ થયેલા તે શ્રમ પાસકેને, શખશ્રાવક પર ક્રોધ કરવા માટે પસ્તા थवा साये। तभी श्रम लगवान महावीरने निभा२ या "पंदित्ता, नमंसित्ता, जेणेव संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छति " महावीर प्रसुने वरदा. નમસ્કાર કરીને, જ્યાં શંખ શ્રમણોપાસક બેઠે હતું ત્યાં તેઓ ગયા “રાगच्छिचा संख समणोवासग वदति, नमसंति" या धन तेभए श्रमराया.
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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