SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 672
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीर काश्च । गौतमः पृच्छति-'अत्थिणं भंते ! सोहम्मे कप्पे दव्वाइं सवण्णाई पि, अमाई पि, तहेव जाव' हे भदन्त ! अस्ति खलु सौधर्मे कल्पे द्रव्याणि सवर्णान्यपि, अवर्णा न्यपि तथैव, पूर्वोक्तरीत्यैव, यावत्-सगन्धान्य पि, अगन्धान्य पि, सरसान्य पि, अरसान्यपि, सस्पर्शान्यपि, अस्पर्शान्यपि ? भगन् आह-'हंता, अस्थि, एवं ईसाणे वि, एवं जाव अच्चुए, एवं गेवेज्जविमाणेसु, अणुत्तरविमाणेसु वि, ईसिपन्भाराए वि, जाव, हंता अधि' हन्त, अस्ति, एवम् ईशानेऽपि, एवं यावत्-सनत्कुमारा: दारभ्याच्युतान्तेषु द्वादशस्वपि, एवं ग्रैचेयकविमानेषु, अनुत्तरविनानेष्वपि, अर्थात् उत्कृष्ट ३३ तेतीस सागरोपेमकी है, ऐसा पाठगृहीत हुआ है। फिर इस स्थिति के बाद देवा में और देवलोकों में स्थिति नहीं है अतः व्युच्छिन्न कहे गये हैं। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूंछते हैं-'अस्थिणं भंते । सोहम्मे कप्पे दवाई सेवन्नाई पि अवन्नाई पि" हे भदन्त ! सौधर्मकल्प में वर्णसहित और वर्णरहित भी द्रव्य में क्या? गन्धसंहित, और गन्धरहित भी द्रव्य हैं क्या ? रससहित और रेसरहित भी द्रव्य है क्या ? स्पर्शसहित और स्पर्शरहित भी द्रव्य में कंया ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता, अस्थि, एवं ईसाणे वि एवं जाव अच्चुए, एवं गेवेज्जविमाणेसु, अणुत्तरनिमाणेसु वि, ईसिपमा राए विजाव हंता, अस्थि" हां, गौतम ! सौधर्मकल्प में रूप, रस, गंध और स्पर्श सहित और इन गुणों से रहित भी द्रव्य हैं, इसी प्रकार से ईशान भी, इसी प्रकार से सनत्कुमार से लेकर अच्युत देवलोकों में भी, . गौतभं स्वाभाना प्रश्न- अंथिणं भंते ! सोहम्मे कप्पे व्वाईसवन्नाई पि भवन्नाई पि?" ३ गवन्! सौष ४६५म शु १ सहित अनेक રહિત દ્ર છે ખરાં? શું ત્યાં ગંધસહિત અને ગંધરહિત દ્રવ્યો હોય છે ખરાં છે ત્યાં સંગ્રહિત અને રસરહિત દ્રવ્યો હોય છે ખરાં અને સ્પર્શ સંહિત અને સ્પેરહિત દ્રવ્યે હોય છે ખરાં? महावीर प्रभुत, उत्त२-': हंता, अस्थि, एवं ईसाणे वि एव जाव असचुए, एवं गेवेज्जविमाणेसु, अणुत्तरविमाणेसु वि ईसिपव्भाराए वि जाव हता, भत्यि" હા, ગૌતમ! સૌધર્મક૫માં રૂપ, રસ, ગંધ અને સ્પર્શથી સહિત અને તે ગુણથી રહિત દ્રવ્ય હોય છે. - ગૌતમ સ્વામીને પ્રશ્ન-એજ પ્રમાણે ઈશાનથી લઈને અચુત પર્યન્તના કપમાં, તથા નવ મયમાં પાંચ અનુત્તર વિમાનમાં, અને ઈષ~ાક્ષા
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy