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________________ भगवती नो श्रद्दधति-न श्रद्धाविषयं कुर्वन्ति, नो पतियन्ति-न विश्वसन्ति, नो रोचयन्तिन रुचिविषयं कुवन्ति, 'एयम8 असदहमाणा अपत्तियमाणा, अरोयमाणा जामेव दिसि पाउंम्भूया, तामेव दिसि पडिगया' एतमर्थ-पूर्वोक्तार्थम् , अश्रद्दधत:-श्रद्धा विषयमकुर्वन्तः, अमतियन्त:-अविश्वसन्तः, अरोचयन्तः-रुचिविषयमकुर्वनाः, यामेव दिशमाश्रित्य प्रादुर्भूताः, तामेव दिशं प्रतिगताः ॥ १॥ . .. . .. ऋषभदत्तस्य वक्तव्यता॥ 'मूलम्-"तेणं कालेणं, तेणं समएणं, समणे भगवं महावीरे जाव समोसाढे, जाव परिसा पज्जुवासइ। तएणं ते समो. वासया इमीसे कहाए लद्धहा समाणा हतुट्ठा एवं जहा तुंग उद्देसए जाव पज्जुवासंति। तएणं समणे भगवं महावीरे तेषि समणोवासगाणं तीसेय महति० धम्मकहा जाव आणाए आराहए भवइ । तएणं ते समणोवासया समणस्स भगवडो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा, निसम्म हट्तुहा उट्राए उडेति उढाए उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं वंदति, नमसंति, वंदित्ता, उसकी प्रज्ञापना करनेवाले, और प्ररूपणा करनेवाले श्रमणोपासकश्रावक ऋषिभद्रपुत्र के इस-पूर्वोक्त कथन को उन श्रमणोपासकों में अपनी श्रद्धा का विषय नहीं बनाया उस पर विश्वास नहीं किया, और न उसे वे अपनी रुचि में ही लाए 'एयमढे असदहमाणा अपत्ति. यमाणा, अरोयमाणा जामेव दिसि पाउन्भूया-तामेव दिसि पडिगया' इस प्रकार इस पूर्वोक्त अर्थ पर अश्रद्धायुक्त हुए, अविश्वासयुक्त हुए, और अरुचियुक्त हुए वे श्रमणोपासक जहाँ से आये थे वहीं पर पीछे चले गये ॥१० १॥ નારા અને આ પ્રમાણે પ્રરૂપણ કરનારા શ્રમણોપાસક (શ્રાવક) ઋષિભદ્રપુત્રના પૂર્વોક્ત કન પ્રત્યે તે શ્રમ પાસકેએ શ્રદ્ધાની દષ્ટિએ જોયું નહીં, તેમને सवातनी प्रतातिय नही मने मा ४थन तमन रुन्यु पर नही. " एयमट्ट असदहमाणा, अपत्तियमाणा, अरोयमाणा जामेव दिसिं पाउन्भूया-तामेव दिसि पडिगया" मश्रद्धायुक्त, मविश्वासयुत भने माययुत थये। मेव ते મણે પાસ કે જ્યાંથી આવ્યા હતા ત્યાં–પિતાપિતાને ઘેર પાછાં ફર્યા. સૂતા
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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