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________________ L चन्द्रिका टीका श० ११० १२० १ देवानांकालस्थिति निरूपणम् ६२९ स्थितिः द्विसमयाधिका यावत् त्रिचतुःपञ्चषट्सप्तष्टनवदशसमयाधिका, संख्येयसमयाधिका, असंख्येयसमयाधिका स्थितिरित्येवं रीत्या- 'उकोसेणं तेत्तीसं सागरोत्रसाई दिई पण्णत्ता, 'तेण परं वोच्छिन्ना देवाय, देवलोगाय' तेन परम्-तदनन्तरम् व्युच्छिन्नाः देवाश्च देवलोकाश्च भवन्ति ततः परं देवाश्च देवलोकाथ नैं सन्तीति भावः । 'तएणं ते समणोवासया इसिमद्दपुत्तस्स - समणोवास गर एवमाइक्खमाणस्स जाव एवं पख्वेमाणस्स एयमट्ठ नो सदहति, नो पत्तियंति, नो रोयंति' ततः खलु ते श्रमणोपासका ऋषिभद्रपुत्रस्य श्रमणोपासकस्य, एवं रीत्या आचक्षतः कथयतः यावत्- भाषमाणस्य, प्रज्ञापयतः प्ररूपयतं एतमर्थ - पूर्वोक्तार्थं संमय अधिक यावत् तीन, चार, पांच, छह, सात, आठ, नौ और दश समय अधिक संख्यातसमय अधिक एवं असंख्यात समय अधिक होती हुई तेतीस सागरोपम तक की वही स्थिति उत्कृष्ट स्थिति हो जाती है तात्पर्य- कहने का यह है कि जघन्य स्थिति इनकी १० हजार की है और एक दो आदि असंख्यात तक के मध्यमस्थिति के विकल्पों 1 अधिक जो ३३ सागरोपम तक की स्थिति है वह उत्कृष्ट इनकी स्थिति है । ' तेण परं वोच्छिन्ना, देवाय देवलोगा य' इस स्थिति के बाद न कोई देव होते हैं और न कोई देवलोक होते हैं । अर्थात् इतनी कृष्टस्थिति से और अधिक स्थितिवाले देवों में देव नहीं होते हैं, न देवलोक होते हैं । 'तरण से समणोवालया इसि भद्दपुत्तस्स समणोवासगस्स एवमाइक्खमाणस्स जाव एवं पत्वेमाणस्स एयम-नो सद्द'तिनो प्रतियंति, नो रोयंति' इस प्रकार से देवों की - - जघन्य और उत्कृष्टस्थिति का कथन करने वाले, यावत् उस पर भाषण देनेवाले, નવ અને દસ સમય અધિક, સ ખ્યાત સમય અધિક, અને અસખ્યાત સમય અધિક થતાં થતાં ૩૩- સાગરોપમ પન્તની જે સ્થિતિ થાય છે, તે સ્થિતિને તે દેવાની ઉત્કૃષ્ટસ્થિતિ કહે છે. આ કથનનું તાત્પ એ છે કે તેમની જઘન્યસ્થિતિ દસ હજાર વર્ષની છે, અને એક એ આદિ અસ ખ્યાત પન્તના મધ્યમસ્થિતિના વિકલ્પાથી અધિક જે ૩૩ સાગરોપમન્તની स्थिति छे, ते तेमनी उत्कृष्ट स्थिति छे " तेण पर वोच्छिन्ना, देवा य देवलोगाय " 33 सागरोपम उश्ता अधिक स्थितत्राजा अर्ध देव पशु होता नथी अपने वसो पशु होता नथी. "तरण से समणोवासया इसिभहपुत्तरस्र समणोवा सयरस एवमाइक्खमाणस्स जाद एवं परूवेमाणस्स एयमटुं नये सरहति, नो पत्तियंति, नो रोयंति " हेवानी धन्य भने उहृष्ट स्थितितुं गया अारे ક્યૂન કરનારા, આ પ્રમાણે વિશેષ કથન, કરનારા, આ પ્રમાણે પ્રરૂપના કર 1 - 4
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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