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________________ प्रमयन्द्रिका टीका श० ११ उ० ११ सू०९ छुदर्शनचरिननिरूपण ५७९ कासनानि, अष्टौ तलान् तलपवरान्-शय्याविशेषाद् 'मवरपणामए' एतान् पूर्वोक्तात सर्वरत्नमयान्-सर्वथा रत्ननिर्मितान् रत्नस्यचित्तान् वा दत्तः इति पूर्वण सम्बन्धः, 'णियगवरभवणकेउ अट्ठभए, झयप्पनरे' निजकवरभवनकेतून्-स्त्र कीयश्रेष्ठमाराादस्य केतुरूपान् , अष्टौ ध्वजान , मजमवरान-ध्वजेषु श्रेष्ठान् 'अट्टवये वयपदरे दस गोसाहस्सिएणं वएणं' अष्टौ नजान्-गोकुलानि, ब्रजप्रवरान्-ब्रजेपु श्रेष्ठान्, दशगोसातत्रिकेण व्रजेन-दशसहस्रगोसमुदायरूपनजस्वरूपापेक्षया अष्टौ ब्रजप्रवरान् बजान दत्तः, 'अट्ट नाडगाई नाडगप्पचराई बत्तीसवद्धणं नोडएणं' द्वात्रिंशद्धे-द्वात्रिंशविधेन, नाटकेन-नाटकापेक्षया अष्टौ नाटकानि, नाटकप्रवराणि-नाटके श्रेष्ठानि 'अट्ठ आसे, आसप्पवरे सचरथणय ए, सिरिघर पडिरूबए' अष्टौ अश्वान्-अश्वप्रवरान्-अश्वेषु श्रेष्ठाच , सर्वरत्नमयान्-सर्वथा रत्नमयभूषणसज्जितान् , अतएव श्रीगृहमतिरूपकान्-लक्ष्मीभाण्डागारल्यान् , 'अट्ठ 'सचरयणामए' लब सर्वधा रत्नों की ही बनी हुई थीं-दिये 'णियगवरभवण केऊ अट्ठ झए झयप्पवरे' तथा ध्वजों में सर्वश्रेष्ट ऐसी अपने श्रेष्ट प्रासाद की केनुरूप आठ ध्वजाएँ, 'अ गये वयप्पवरे' दस गोसाहस्लिरण वएण' ब्रजों में श्रेष्ठ आठ ब्रज दिये एक २ व्रज में दश हजार गोसमूह होता है ' अट्ठ नागाई नामापवराई बत्तीसयद्वेण नाडएण' बत्तीसप्रकार के आठ नाटक दिधे, जो कि नाटकों में श्रेष्ट थे ' अ आले, आसप्पचरे, समरपणामए, लिरि घरपडिरूवए' आठ घोडे दिये जो कि घोडों में ष्ठ थे और श्रीघर के जैसे थे-लक्ष्मी के भण्डार के तुल्य थे, एवं सर्व प्रकार के रत्नों दो सुपर्णले सज्जित " सव्वरयणामए" २ सा रत्नानी २४ भनेकी उनी ते दीधी. “णियगवरभवणकेऊ अढ झए अयप्पपरे” तथा वन मा श्रेष्ठ मेवा पोताना सननी तु३५ मा पन मे! ५५ हीधी. " भट्ट वये वयंपवरे, दसगोसाहस्सिएण वरण" मा श्रेsai 28 म हीयांप्रने પ્રત્યેક વ્રજમાં–ગેકુવ-દસ હજાર ગાયે હોય છે, એવા આઠ વજે દીધાં એમ २५ सभा नये "अट्ट नाडगाई नाडगप्पनराई बत्तीसबर्तण नाबएण" पत्रीस ४२न नाटीमा सर्वश्रे४ वi B ना ही "अट्ट आसे, आसप्पवरे, सनरयणामए सिरिघरपडिरूवए" घान्यामा श्रेष्ठ शेव श्रीधर (લક્ષમીના ભંડાર સમાન આઠ અશ્વો દીધા તે ઘોડાઓ બધા પ્રકારનાં રતનાં भाभूषणथा विभूषित उता. " अठ्ठ हत्थी हथिप्पवरे, सव्यरचणामए सिरि
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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