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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० १० सू० ६ सुदर्शनचरितनिरूपणम् मालमृीना-सिद्धार्थका:-सर्षपाः हरितालिका-दुर्वा तत्स्वरूपाणि तैर्वा कृतानिस्थापितानि मङ्गलानि मूनि-मस्तके यै स्ते तथाविधाः, स्वकेभ्यो स्वकेभ्यो निजनिजेभ्यो गृहेभ्यो निगच्छन्ति, 'निग्गच्छित्ता इत्थिणापुर नगर मझं मज्झेणं जेणेव बलरस रन्नो भवणवरवडेंसए, तेणेव उवागच्छंति' स्वकेभ्यः स्वकेभ्यो गृहेभ्यो निर्गत्य इस्तिनापुर नगरमाश्रित्य मध्यमध्येन-मध्यभागेन, यत्रैव वलस्य राज्ञो भवनवरावतंसकः-उत्तमप्रासादः, आसीत् , तु व उपागच्छन्ति, 'उबागच्छित्ता भवणवरवडे सगपडि दुवारंसि एगओ मिलंति' उपागत्य भवनवरावतंसकमतिद्वारे एकतो मिलन्ति-एकत्री भवन्ति, 'एमओ मिलित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छंति' एकतो मिलित्वा-संधीभूय, यत्रैव बाह्या उपरथापनशालाआसीद तत्रैच उपागच्छन्ति, 'उवागच्छित्ता करयल जाच वलरायं जएणं, विजएणं बद्धावेति' उपागत्य करतलेन यावत्-मल्त के शिरसावर्तम् अञ्जलिं कृत्वा, बलं राजान अपने २ मस्तकों के ऊपर उन्हों ने सिद्धार्थक-सरसों से और हरितालिका-दूर्वा शिर पर धारण किया और अपने २ घरों से पाहर निकले 'निग्गन्छित्ता हस्थिणापुरं नगर मज्झमज्ज्ञणं जेणेव यलस्स रण्णो भवणवरवडेंसए तेणेव उनागच्छंति' बाहर निकलकर वे हस्तिनापुर नगर के बीचों बीच से होकर जहाँ बळ राजा का श्रेष्ठ राजमहल था वहां पर आथे ' उवागच्छित्ता भवणवरवडेंसग पडिदुषारंसि एगओ मिलंति' वहां आकर वे सब के सब उसश्रेष्ठ राजमहल के दरवाजे पर एकत्रित हुए 'एगओ मिलित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छंति' इकट्ठे होकर फिर वे जहां पर बोय उपस्थान शाला थी वहां पर आये 'उवागच्छित्ता करयल जाव चलंरायं जएणं विजएणं वद्धाति' यहां आकर के उन्हों ने दोनों हाथ जोड़कर वलराजा को नमस्कार करते हुए जय विजय शन्दों से बधाया निग्छंति" त्या२ मा तभो पात पोताना भरत ५२ सरस भने र તાલિકા (કર્વી) વડે મંગલપચાર કર્યો, પછી તેઓ બલરાજાના ઉત્તમ મહેલ पासे भावी पठेन्या. “ उवागच्छित्ता भवणवरवडेंसगपदिदुवारंसि एगो मिलंति" त्या मापी त मां शतना ते उत्तम भडसना ४२पात पासे मेगा थया. “ एगमो मिलित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला वेणेव उवागछंति" से धन तो सनी महा२नी पस्था नशामा माव्या. " उवागच्छित्ता करयल जाव बलं राय जएणं विजएणं वद्धावेंति " त्यां मापान તેમણે બને હાથ જોડીને રાજાને નમસ્કાર કર્યા અને “તમારે જય હે, तभारे। विश्य " मेवा शहाथी तभ ने पायो, “तएणं सुवि.
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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