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________________ प्रमैयचन्द्रिका टोकाश० ११ ९७० ११ सू० ३ यथानिवृश्चिकालायिनिरूपणम् ४३७ दयसभिइसमागमेणं सा एगा आवलियति पवुच्चई' समयार्थतमा अलंख्येयानाम्-मसंख्यातानाम्, समाधानास्, ससुश्यसमितिसमागमेन-असंख्यातसमयसम्बन्धिनो ये समुदयाः-समूहास्तेषां याः समितयः-मोलनानि तासां यः समागमः-संयोगः, स समुदयसमितिसमागमरतेन यत् कालसानं भवति सा एका आवलिका इविनोच्यते, 'संखेज्जाभो आवलियाभो जहा सालिउद्देसए जाव सागरोवमहसउ एगस्समवे परिमाणं' संख्येयाः-संख्याताः आलिकाः एकः उच्छवासः प्रोच्यते, इल्यादि यथा भाल्युद्देशके-पष्ठशतकस्य सप्तमीदेशके पतिपादितं तथैवात्रापि प्रतिपत्तव्यम्, कियत्पर्यन्तमित्याह-बावर 'एएसि पल्लाणं' इति गाथायाः 'सागरोनमस्सउ एगस्ल भवे परिमाणं" "तत् सागरोपमस्य तु एकस्य सने परिमाणम्' इत्वन्तिमपदपर्यन्तमवसेयम् । सुदर्शनः पृच्छति-'एएहि गं भंते ! पलिओयससागरोवमेहि किं पयोयणं ? ' हे भदन्त । एतैः खल्ल पल्यो'समययाए असंखेज्जाण समयाणं साद्यसमिइसमागमेणं सा एसा आलियर्याप्त पधुच्चा' असंख्यात. समयों के खिलाप से जो संयोग होता है उस संयोग से जो काल का भान होता है वह एक आवलिका है अर्थात्-असंख्यात लमयों की एक आवलिका होती है। ‘संखेज्जाओ आपलियाओ जहा सालिउद्देसर जाच सागरोवमस्स उ एगरम भो परिमाण तथा संख्यात आवलिकाओं का एक उच्छ. चास काल होता है इत्यादि कथन जैसा शालि उद्देशक-छठे शतक के सप्तम उद्देशक में किया गया है, उसी प्रकार से यहां पर भी जानना चाहिये वह कथन 'एएलि पल्लाण' इस गाथा के त सागरोवनम्स उ एगह भवे परिमाणं' इस अन्तिम पद पर्यन्त वहां कहा गया है। अच्च सुदर्शन प्रनु से पूछते हैं-'एएहिं ण मते ! पलिओमसागसमय ४९ छे. “ समयदयाए असंखेज्जाण' समयाण समुदयसमिइसमागमेण' सा एगा आवलियत्ति पवुच्च ह " अभ्यात सभयो । भणीने से भावलि मने છે. આ રીતે આવલિકા પ્રમાણુકાળ અસંખ્યાત સમયના સમૂહરૂપ હોય છે. “संखेज्जाओ आवलियाओ जहा सालिलहेसए जाव सागरोवमरस उ एगस्स भवे परिमाण" तथा सभ्यात मासियाना मे २स थाय छ, ઈત્યાદિ સમસ્ત કથન છઠ્ઠા શતકમા પાચમાં ઉદ્દેશામા-શાલિઉદ્દેશામાં-કહ્યા अनुसार समापु. ४थन " एएसिं पल्लाण " ! थाना “ त सागरो वमस्स उ एगस्सभवे परिमाण' मा मन्तिम ५६ ५। त्यो मायामा આવેલ છે. તો તે સમસ્ત કથન અહીં પણ ગ્રહણ કરવું જોઈએ.
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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