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________________ भगवती सूत्रे ४३६ तेषां देवानां गतं व्यतिक्रान्तं क्षेत्र बहुकं भवति, अपितु अगतम् - अव्यतिक्रान्तं क्षेत्र वहुकम् अधिकं भवति, 'गयाउसे अगए अनंतगुणे, अगयाउसे गए अणवभागे ' यवाद - व्यतिक्रान्तात् क्षेत्रात् तत् - अगवम् - अपतिकान्तं क्षेत्रम् अनन्तगुणाधिकं भवति, अगतात् - अव्यतिक्रान्तात् क्षेत्रात् तत् नतं व्यतिक्रान्तं क्षेत्रम् अनन्तभान्यूनं भवति । अन्ते भगवान अलोकयुपसंहरन् आह-'अलोए णं गोयमा ! ए महालए पण्णत्ते' हे गौतम ! अलोकः खलु इयन्महालयः ईदृशविशालः प्रज्ञप्तः ||०२|| लोकैकप्रदेश वक्तव्यता | मूलम् -- लोगस्स णं भंते! एगंमि आगासपए से जे एगिंदियपरसा आव पंचिदियपरसा, अणिदियपएसा अन्नमन्नबद्धा, अन्नमन्न पुट्ठा जाव अन्नमन्नसमभरघडसाए विहति ? अस्थि णं भंते! अन्नमन्नस्स किंचि आवाहंबा, बाबाचा उप्पायंति, छविच्छेदं वा करेंति ? णो इट्टे समट्टे ! से केणट्टे णं भंते! एवं वुच्छइ - लोगस्स णं एगंमि आगासपएसे जे एनिंदियपपसा जाब चिति, पास्थि णं भंते ! अन्नमन्नस्त किंचि आवाहंबा जाव करेंति ? गोयमा ! से जहा नामए नहिया लिया सिंगारागौतम | 'वो गए हुए, अगए बहुए ' उन देवों का व्यतिक्रान्त क्षेत्र अधिक नहीं है अपितु जो अगत क्षेत्र है वह बहुत है क्यों कि 'गयाउ से अगए अतपुणे, अगयाउसे गए अनंतभागे ' व्यतिक्रान्तक्षेत्र से अव्यतिक्रान्त क्षेत्र अन्तगुणा अधिक है और अव्यक्तिकान्त क्षेत्र से व्यक्तिकान्तक्षेत्र अनन्तवें भाग है । अन्त में भगवान् अलोक का उपसंहार करते हुए कहते हे 'अलोए णं' गोयमा ! ए महालए पण्णत्ते ' हे ! अलोक इतना बड़ा है || २ || अव्यतिठान्त (अनुस ंधित) क्षेत्र अधिक होय छे, ४२ ' गयाउसे अगए अणतगुणे, जगयाउखे गए अनंतभागे " ગત ક્ષેત્ર (ઉલ્લાઘિત ક્ષેત્ર) કરતાં અગત ક્ષેત્ર (અનુલ ઘતક્ષેત્ર) અનંત ગણુ હાય છે અને અગતક્ષેત્ર કરતાં ગતક્ષેત્ર અનંતમા ભાગ પ્રમાણુ હાય છે, અન્તે અલોકના પ્રમાણના ઉપસ'હાર કરતા भडावीर प्रभु मुहे हे "अलोए णं गोयमा ! ए महालए पण्णत्ते " हे गौतम ! असो! माटो मधो विशाण उद्यो छे. ॥ सू०२ ॥
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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