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________________ ૪૩ प्रमेयचन्द्रिका टीका शक ११ उ० १० सू० १ लोकस्वरूपनिरूपणम् प्रदेशे यद्यपि प्रदेश एवास्ति तथापि देवशब्दस्यावयवार्थतया अवयवमात्रस्यैव विवक्षि तत्वेन निरंशत्वरय च तत्र सतोऽपि अविवक्षितत्वात् धर्मास्तिकायस्य देश इत्युक्तम्, प्रदेशस्तु स्वाभाविक एवमस्ति इत्याभिप्रायेणाह - 'धम्मत्थिकायस्स पए से २' धर्मा स्तिकायrय प्रदेशोऽस्ति २, 'एवं अहम्मत्थिकायस्स वि ४' एवं पूर्वोक्तरीत्यैव अधमस्तिकायस्यापि विज्ञेयम् - तथाच तत्सूत्रम् - "नो अधम्मत्थिकाए. अधम्मस्थिका यस्स देसे, अम्मत्थिकायस्स परसे " इति, एवं धर्मास्तिकायवद् अधर्मास्तिकायो नास्ति किन्तु अधर्मास्तिकायरय देशः, प्रदेशश्चास्ति ४, 6 अद्धा समए' ५' अद्धासमय:- कालथेत्यर्थ: ५' गौतमः पृच्छति - ' तिरियलोग खेत्त लोगचाहिये - यद्यपि आकाश के एकमदेश में धर्मास्तिकाय का एक ही प्रदेश हैतो भी अवययार्थवाला होने से देश शब्द का अर्थ अवयवमात्ररूप विव क्षित होता है. इसलिये निरश उसका वहां सद्भाव होने पर भी अविक्षित होने के कारण वहां धर्मास्तिदाय का देश हैं इसरूप से कहा गया है । 'धम्मकिायस्स परसे २' धर्मास्तिकाय का प्रदेश २, यह यहां स्वाभाविक रूप से ही है । ' एवं ' अहम्मत्थि कायस्स वि' इसी प्रकार से यहां अधर्मास्तिकाय का देश ६, और अधर्मास्तिकाय का प्रदेश है ४, अधर्मास्तिका पूरा का पूरा नहीं है, परन्तु उसका देश और प्रदेश यहां है । यही बात-' नो अवम्मस्थिकाए, अधम्मत्थिकायस्वदेसे, अधम्मत्थिकायस 'पसे' इस सूत्र द्वारा समझाई गई है । अद्धासमए' ५ आकाश के एकप्रदेश में काल है ही. इस प्रकार से ये अरूपी अजीव पांच प्रकार के हैं । અહી એવુ સમજવું જોઈએ કે આકાશના એક પ્રદેશમાં ધર્માસ્તિ કાયને એક જ પ્રદેશ હાય છે, તે પણ અવયવા વાળા હેાવાથી દેશ શબ્દને અ અવયવમાત્રરૂપ વિવક્ષિત થાય છે. તેથી નિરશ તેના ત્યાં સદ્ભાવ હાવા છતાં પણ અવિક્ષિત હવાને કારણે “ત્યાં ધર્માસ્તિકાયના દેશ હાય 'छे, " या अारनुं धन ४२वामा मान्युछे. "C " धम्मथिकायरस पएसे " (२) त्यां धर्मास्तियनो प्रदेश तो स्वासावि शते होय छे" एव अहम्मत्थिकायस्स त्रि" (3) मे४ असा અધર્મા!સ્તકાયના દેશ અને (૪) અધર્માસ્તિકાયના પ્રદેશ હાય છે ત્યાં અધર્માસ્તિકાય પૂરેપૂરૂ હાઈ શકતુ નથી, પરન્તુ તેના દેશ અને પ્રદેશ જ ત્યા सलवी शडे छे. थेन वात सूत्रारे "नो अधम्मत्थिकाए, अधम्मत्थि कायस् देसे, अवम्मत्थिकायस्त्र पसे " मा सूत्रपाद्वारा समन्वी छे, "अद्धा समए ५ " (૫) અને આકાશના એક પ્રદેશમાં કાળ હેાય છે જ. આ રીતે આ અરૂપી પંચ પ્રકારના અજીવા અધેાલે ક રૂપ ક્ષેત્રના એક આકાશપ્રદેશમાં હાય છે.
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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