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________________ भगवती सूत्रे ३५४ सुबहु अनेकं लौहीलोहकटाहकच्छुकं यावत् ताम्रकं माण्डकं किटिनसांकायिकवंशमयपात्र विशेष च गृह्णाति 'गेव्हेता, जेणेव इरिथणापुरे नगरे जेणेव तावसाबस, तेणेत्र उनागच्छिह, उवागच्छित्ता भंडनियखेवं करेड, करिता' गृहीत्वा यत्रैव हस्तिनापुरं नगरं यत्रैव तापसावसथं - तापलाश्रम आसीत्, तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य भाण्ड निक्षेपं पात्रादिस्थापनं करोति पात्रापकरणानि स्थापयतीत्यर्थः, कृत्वा पात्रादिकं स्थापयित्वा हत्थापुरे नगरे सिंघारण जान पहेनु बहुजणस्स एवमाक्खर, जा एवं परुवेई' हस्तिनापुरे नगरे नृङ्गाटकवियात् चतुष्क चत्वर सहापथपथेषु बहुजनस्य एवं वक्ष्यमाणरीत्या आख्याति यावत्- भापते, संकायंच गेहइ' वहां आकर के उसने अपने उन अनेक लोही, लो कटाह, कडछी आदि को तथा तांबे के तापस योग्य भाण्डोपकरण को एवं वंशनिर्मित पात्र को लिया 'गेहिता जेणेव उत्थिणापुरे नयरे जेणेव तावसावसहे तेणेव उवागच्छद्द ' लेकर वह जहां हस्तिनापुर नगर में तापसों का आश्रम था वहां पर आया, 'उपावच्छित भंडनिक्रखेव' करे, करिता' वहां आकर के उसने अपने उन समस्त पात्रादिक उपकरणों को एक ओर रख दिया रखकर 'दक्षिणापुरे नयरे सिंघाउन जाव पहेसु बहु जणस्स एवमाइक्खह जोव एवं परुवेह ' फिर उसने हस्तिनापुर नगर में शृङ्गाटक आदि मार्गों पर एवं राजमार्ग पर मिले हुए अनेक मनुष्यों से इस प्रकार कहा - यावत् भाषण किया, प्रज्ञापित किया और प्ररूपणा की यहाँ चावत् शब्द से 'त्रिक, चतुष्क, चत्वर, महापथ' इन मार्गों का ग्रहण किया गया है | 'अस्थि च गेण्ड्इ ' त्यां भावीने तेथे येतानां अने तथा बोड उडाडी, उच्छी माहि ઉપકરણેાને તથા તાંબાના તાપસચેાગ્ય ભાડાપકરણેાને તથા વાંસ નિમિત કઢિનને (પાત્રવિશષને ) ઉઠાવી લીધાં गेण्हित्ता जेणेव हत्थिणापुरे नयरे जेणेव तावसावर हे तेणेव उत्रागच्छछ ” अने ते हस्तिनापुर नगरभां तायसोनी ? आश्रम हतो त्यां मान्यो “उवागच्छित्ता भडनिक्खेव करेइ, करिता " ત્યાં આવીને તેણે પેાતાનાં તે સમસ્ત પાત્રા અને ઉપકરણાને એક ખાજુ મૂકી દીધાં. ત્યાર બાદ हथिणापुरे नरे घाडग जाव पहेसु बहुजणस्स एवमाइक्खइ जाव एवं परूवेइ " तेथे हस्तिनापुर नगरना श्रंगार साहि भार्गो पर अने राजमार्ग पर ( अड्डी' 'जाब' ) पहथी त्रि, यतुष्, यत्वर અને મહાપથ, આટલા માર્ગોને ગ્રહણ કરવામાં આવ્યા છે) એકત્ર થયેલા અનેક મનુષ્યને આ પ્રમાણે કહ્યું, ભાંખ્યું, પ્રજ્ઞાપિત કર્યુ અને પ્રરૂપણ્ણા કરી 66 ८८
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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