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________________ प्रमैrन्द्रिका टीका श० ११ उ० १ सू० १ उत्पले जीवोत्पत्तिनिरूपणम् २७७ अथ द्वात्रिंशं च्यवनद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति - ' तेणं भंते ! जीवा मारणंतिसमुग्धारणं किं समोहया मरंति, असमोहया मरंति ? हे भदन्त ! ते खलु उत्पलस्था जीवाः मारणान्तिकसमुद्घातेन किं समवहताः सन्तो म्रियन्ते ? किंवा मारणान्तिक - समुद्घातेन असमवहताः म्रियन्ते । भगवानाह - 'गोयमा ! समोहया वि मरंति, असमोहया त्रिसरति ३२' हे गौतम! उत्पलजीवाः मारणान्तिक समुद्घातेन समवहता अपि म्रियन्ते, असमवहता अपि म्रियन्ते इति द्वात्रिंशं च्यवनद्वारम् ॥ ३२॥ अथ त्रयस्त्रिंशमूलादिषु उपपातद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छवि - ' तेणं संते ! जीवा अनंतरं उट्टित्ता कहिं गच्छति, कहि उववज्जेति ?' हे भदन्त ते खल्ल वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात और मारणान्तिक समुद्घात | इस प्रकार से यह इकतीसवां समुद्धात द्वार है । अब ३२ वे च्यवनहार को लेकर गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं'तेणं भंते! मारणंतियसमुग्धाए णं किं समोहया मरंति, असमोहया मरंति' हे भदन्त ! वे उत्पलस्थ जीव मारणान्तिक समुद्घात से समयहत होकर मरते हैं, अथवा मारणन्तिक समुद्घात से असमवहत होकर मरते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा ! समोहा वि मरंति, असमोहयावि मरंति ' हे गौतम | वे उत्पलस्थ जीव मारणान्तिक समुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं । इस प्रकार से यह ३२ वां च्यवनद्वार है । अब गौतम मूलादिकों में उपपात रूप ३३ वें द्वार को आश्रित करके प्रभु से ऐसा पूछते हैं-' तेणं भंते! जीवा अणंतर उट्टित्ता कहिं गच्छति, छे-वेयणासमुग्धाए, कसायसमुग्धाए, मारणंतियसमुग्धाए " ( १ ) वेहना सभुद्धात, (२) उषाय समुद्द्धात भने ( 3 ) भारयान्तिः सभुद्धात ॥ ३१ ॥ ३२ भां व्यवनद्वारनी अ३पा - गौतम स्वाभीना अश्न- " तेण भवे ! जीवा मारण तियसमुग्धापणं किं समोहया मरंति, असमाइया मरति ? " હૈ ભગવન્! તે ઉપલવતી જીવે શુ' મારણાંતિક સમુદ્દાતથી સમવહત થઈ ને મરે છે ? કે મારણાન્તિક સમુદ્દાતથી અસમવહત થઈ ને મરે છે ? भडावीर अलुना उत्तर- " गोयमा ! समोहया वि मरंति, असमाया वि मरंति ” हे गौतम ! तेसो भारयान्तिः समुद्घातथी सभवहुत थाने पशु भरे छे भने मभवहुत थाने भरे छे ॥ ३२ ॥ મૂલાર્દિકામાં ઉત્પત્તિ રૂપ ૩૩મુ" ઉષપાતર-ગૌતમ સ્વામીના પ્રશ્ન 66 " वेण' भंते! जीवा अणंतरं उवट्टित्ता कहि गच्छेति, कहि उववज्जति ? " ड
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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