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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० १ सू० १ उत्पले जीवोत्पत्तिनिरूपणम् २३७ उपपद्यते ? किंवा देवेभ्यः उपपद्यन्ते ? भगवानाह - 'गोयमा ! नो नेरइए डितो. भगवानाह - उववज्र्ज्जति, तिरिक्खजोगिएर्हितो वि उववज्जंति, माणुसे हिंतो. वि उववज्जंति, देवेर्हितो वि उववज्जंति ' हे गौतम! द्विपत्राद्यवस्थोत्पलस्था जीवा नो नैरयिकेभ्य उपपद्यन्ने, अपितु तिययौनिकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते मनुष्येभ्योऽपि उपपद्यन्ते, देवेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, ' एवं उनवाओ भाणियन्बो, जहा बकंती दणश्मइकाइयाणं जाव ईसाणेति' एवम् उक्तरीत्या उपपातः उत्पलस्थजीवानामुत्पादो भणितव्यो वक्तव्यः, यथा प्रज्ञापनायाः षष्ठे व्युत्क्रान्तिपदे वनस्पतिकायिकानां यावत् ईशानान्तदेवेभ्यः उपपातः उक्तस्तथैवात्रापि हैं ? यो तिर्यञ्चों में से उत्पन्न होते हैं ? या मनुष्यों में से उत्पन्न होते हैं ? या देवों में से उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'गोयमा' हे गौतम! 'नो इहितो उववज्जति, तिरिक्खजोणिरहितो वि उचवज्जति, माणुसेहितो वि उववज्जेति देवेहिंतो वि उचवज्जति' द्विपत्रादि अवस्थावाले उत्पल में रहे हुए जीव वहां नैरयिकों में से उत्पन्न नहीं होते हैं, किन्तु वे वहां तिर्यंच योनि में से भी उत्पन्न होते हैं. मनुष्ययोनि में से भी उत्पन्न होते हैं, तथा देवयोनि में से भी उत्पन्न होते हैं । एवं उवबाओ भणिच्वो, जहा वकंतीए वणस्सहकारण जाव ईसाणेत्ति' इस प्रकार से उत्पलस्थ जीवों का उत्पाद जैसा कि प्रज्ञापना के छठे व्युत्क्रान्तिपद में वनस्पति कायिक जीवों का उत्पाद यावत् ईशानान्त તેમાં ઉત્પન્ન થાય છે? તિય ચામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? કે મનુ ચેામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય થાય છે? કે દેવામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? भहावीर प्रभुन। उत्तर– “गोर्यमा ! हे गौतम! नो नेरइएहितो उaaજ્ઞત્તિ ” દ્વિ પત્રાદિ અવસ્થાવાળા ઉત્પલમાં રહેલા જવા ન કામાથી આવીને त्यां उत्पन्न थतां नथी, ' तिरिक्खजोणिएहिंतो वि उववज्जति माणुसेहिंतो वि उववज्जंति, देवेहिंतो वि उववज्जंति " परन्तु तेथे तिर्यययोनिमाथी भावने પણ ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે, મનુષ્યયેાનિમાથી આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે અને દેવयोनिमांथी भावीने या उत्यन्न थाय छे. " एव उवत्राओ भाणिया, जहा वक्कतीए वणस्लइयाणं जाव ईम्राणेत्ति" मा अरे उत्पदना लेवोना उत्पादने मनु લક્ષીને પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના છઠ્ઠા વ્યુત્ક્રાન્તિપદમાં વનસ્પતિકાયિક જીવેાના ઉત્પા
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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