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________________ १४४ भगवतीसो नाह-'णो इणढे समहे' हे स्थविराः ! नायमर्थः समर्थः, नैतत् संभवति, स्थविराः पृच्छन्ति-'सें केणटेणं भते! एवं वुच्चइ-णो पभू चमरे असुरिंदे असुरकुमारराए, चमरचंचाए, रायहाणीए जाब विहारत्तए ?' हे भदन्त ! तत्-अथ केनार्थेन कथं तावत् एवमुच्यते-नो प्रभु समर्थः चमरः असुरेन्द्रः, अमुरकुमारराजः, चमरचञ्चायां राजधान्यां, यावत् सुधर्मायां समायाम् , चमरे सिंहासने टिकेन पूर्वो. तेन देवीसमूहेन साद्धम् दिव्यास् , भोगभोगान् भुनानो विहर्तुम् ? भगवानाइ'अज्जो ! चमरस्स णं असुरकुमाररन्नो चमरचंचाए रायहाणीप, सभाए सुहम्माए, माणवए चेइयखंभे वइरामएम्ल गोलवट्टसमुग्गएसु बहूओ निणसकहाओ, संनिक्वित्ताओ चिट्ठति' हे आर्याः । स्थविराः । चमरस्य खलु असुरेन्द्रस्य असुरकुमारहै क्या ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं जो इण? सम?' हे स्थविरों यह अर्थ समर्थ नहीं है । अर्थात् ऐसी बात वहां संभवित नहीं होती है। इस विषय को पुनः जानने के अभिप्राय से स्थविर भगवन्त प्रभुसे ऐसा पूछते हैं-'से केणटेणं भंते! एवं बुच्चइ, णो पभू चमरे असुरिंदे असुरकुमारराए चमरचंचाए रायहाणीए जाप विहरित्तए' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर चमरचंचा राजधानी में थावत्-सुधर्मा सभा में, चमरसिंहासन ऊपर बैठकर पूर्वोक्त त्रुटिक के साथ-देवी समूह के साथ-दिव्य भोग भोगों को भोगने के लिये समर्थ नहीं है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं'अज्जो ! चमरस्स णं असुरिंदस्त असुरकुमाररन्नो चमरचंघाइ राय. हाणीए, सभाए सुहम्माए, माणवए चेयखंभे, वामएसु गोलघट्टसमुग्गएस्सु बट्टओ जिणसकहाओ संनिक्खित्ताओ चिट्ठति' हे विरो! असुरेन्द्र असुरकृमारराज चमर की चमरचंचाराजधानी में सुधर्मा भावीर प्रभुने। उत्तर-“णो इण समद्धे " है यवि ! मे सभी शजतु नथी. स्थविशन। प्रश्न-" से केणद्वेण भते ! एवं वुच्चइ" त्या 3 ભગવદ્ ! આપ શા કારણે એવું કહે છે કે અસુરેન્દ્ર, અસુરકુમારરાજ ચમર પિતાની ચમચંચા રાજધાનીની સુધર્માસભામાં અમર નામના સિહાસન પર વિરાજમાન થઈને પૂર્વોક્ત ત્રુટિક (૪૦ હજાર દેવીઓના સમૂહ સાથે દિવ્ય ભેગે ભેગવવાને સમર્થ નથી ? महापा२ प्रभुना उत्तर-" अज्जो |" उ मा ! " चमरम्स ण असुरिदरस असुरकुमाररन्नो चमरचचाए रायहाणीए, सभाए सुहम्माए, मोणवए चेइयखंभे, वहरामएसु गोलवट्टममुग्गएसु बहूओ निणसकहाओ सनिविखत्ताओ चिट ति" सु રેન્દ્ર, અસુરકુમારરાજ ચમરની ચમચંચા રાજધાનીમાં આવેલી સુધર્માસભામાં
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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