SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीने ફરષ્ઠ सगा देवा ? ' तत्-अथ केनार्थेन कथं यावत्-शकस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य त्रायस्त्रिशकाः मन्त्रिसदृशाः देवाः त्रयस्त्रिंशत् सहाया उच्यन्ते ? भगवानाह-एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं, तेणं समएणं इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पालासए नाम संनिवे से होत्था, वण्णओ' हे गौतम ! एवं खलु निश्चयेन, तस्मिन् काले, तस्मिन् समये, इहैव तावत् जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते व पालाशको नाम सभिवेश आसीत् , वर्णकः, अस्य पालाशकसन्निवेशस्य वर्णनं चम्पानगरी वर्णनवद् बोध्यम् , 'तत्थ णं पालासए सन्निवेसे तायत्तीसं सहाया गाहावई, समणोवासया, जहा चमरस्स जाव विहरंति' तत्र खलु पालाशके सन्निवेशे त्रयस्त्रिंशत् सहायाः, गाथाजाव तायत्तीसगा देवा' हे भदन्त ! देवेन्द्र देवराज शक्र के मंत्रि स्थानापन्न-सहायकभूत ३३ त्रायस्त्रिंशक देव हैं ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं खलु गोयमा ! सेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जवुद्दीवे दीवे मारहे वासे पालासए नाम संनिवेसे होत्था, वण्णओ' हे गौतम! इसका उत्तर इस प्रकार से हैउसकाल में और उस समय में इस जंबूदीप नामके द्वीप में स्थित भरतक्षेत्र में एक पालाशक नामका संनिवेश था-इसका वर्णन चंपा नगरी के वर्णन की तरह जानना चाहिये. 'तत्थ णं पालासए सन्निवेसे तायत्तीस सहाया गाहावई, समावालथा, जहा चमरस्स जाव विहरंति' उस पालोशक लन्निवेश में परस्पर में सहायता करने वाले ३३ गौतम स्वामीना प्रश्न-“ अत्थिण भते सक्करस देवि दस्स देवरण्णो पुच्छा" मगन् ! हेवेन्द्र, हेव२।०४ शने सहायभूत थनारा तेत्रीस कायसिश है। य छ भ२२ ? महावीर प्रसुनो उत्त२-"ह ता अस्थि" , ગૌતમ! દેવેન્દ્ર, દેવરાજ શકને સહાયભૂત થનારા ૩૩ ત્રાયશ્વિશક દેવ હોય છે. गौतम स्वामीना प्रश्न-" से केणठेण जाब तायत्तीसगा देवा" -. વન! એવું આપ શા કારણે કહે છે કે દેવેન્દ્ર, દેવરાજ શક્રના મંત્રીસ્થાનાપન્ન સહાયક્ત ૩૩ ત્રાયઅિંશક દે હોય છે? भावीर प्रभुना उत्तर-एव खलु गोयमा तेण कालेण तेण' समएण इहेव जबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पालासए नाम' सनिवेसे होत्या वणो" गौतम ! આ જંબૂઢીપ નામના દ્વીપના ભરતક્ષેત્રમાં પાલશક નામે એક સંનિવેશ (ક) हेतु. तेनु न पानगरी प्रभारी समर'. “ तत्थण पालासर सन्निवेसे तायत्तीस सहाया गाहावई, समणोवा मया, जहा चमरस्स जाब विहरति " ते પાલાશક સંનિવેશમાં પરસ્પરને સહાયભૂત થનારા ૩૩ શ્રમણોપાસક શ્રાવકે
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy