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________________ १८... . भगवतीस्त्र शंकादेवाः त्रयस्त्रिंशत्सहायाः सन्ति ? भगवानाह-' एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं, तेणं समएणं, इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विभेले णामं संनिवेसे होत्था, वणो ' हे गौतम ! एवं खलु निश्चयेन, तस्मिन् काले, तस्मिन् समये इहैव तावत् जम्युद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे विभेलो नाम सन्निवेशः आसीत् , वर्णकः, अस्य वर्णनमपि चम्पानगरी वर्णनवदेव बोध्यम् । 'तत्थ णं विभेले संनिवेसे जहा चमरस्म जाव उचवन्ना' तत्र खलु बिभेले सन्निवेशे यथा चमरस्य यावत् त्रयस्त्रिंशत् सहाया गाधापतयः श्रमणोपासकाः परिचसन्ति, आढयाः यावद्दीप्ताः परैरपरिभूताः अभिगत३३ प्रायस्त्रिंशक देव हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता, अत्यि' हां, गौतम । हैं अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'से केणटेणं ! एवं वुच्चइ, वलिस्स बहरोयणि दस्स जाव तायत्तीसगा देवा तायत्तीस सहाया' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि वैरोचनेन्द्र, वैरोचनराज पलिके मंत्रिकल्प तेंतीस ३३ सहायकभूत त्रायस्त्रिंशक देव हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेण समएण इहेव जंबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, विभेले णामं संनिवेसे होस्था, वणी ' हे गौतम! तुम्हारे प्रश्नका उत्तर इस प्रकार से हैंउस काल में और उस समय में इस जंबूदीप नामके द्वीप में स्थित भारतवर्ष में-भरतक्षेत्र में-विभेल नामका एक संनिवेश था. इसका वर्णन भी चंपानगरी के वर्णन की तरह जानना चाहिये 'तस्थणं विभेले संनिवेसे जहा चमरस्स जाव उववन्ना' उस विभेल संनिवेश में चमर के त्रायस्त्रिंशक देवोंके सम्बन्ध में जैसा कथन किया गया है उसी प्रकार से परस्पर में एक दूसरे के सहायक श्रमणापासक तेंतीस ३३ भडावीर प्रभुने। उत्तर-“हंता, अस्थि " 1, गौतम । पात भरी छ. गौतम स्वाभीमा प्रश्न-" से केणठेण एवं वुच्चइ, बलिस्स वइरोयणि दस्स जाव तायत्तीसगा देवा तायत्तीस सहाया ?" लगवन् ! मेवु भा५ ॥ કારણે કહે છે કે વિરોચનેન્દ્ર, વિરેચનરાય બલીના મંત્રી સમાન સહાયકારી 33 त्रायशि व छ? महावीर प्रसन। उत्त२-" एव खलु गोयमा ! तेण' कालेण तेण समएण इहेव ज बुद्दीवे दीवे भार हेवासे, बिभेले णाम सनिवेसे होत्था, वण्णओ" गीतम! તમારા પ્રશ્નનો ખુલાસો આ પ્રમાણે છે-તે કાળે અને તે સમયે આ જંબુદ્વીપના ભરતક્ષેત્રમાં ખિલેલ નામનું એક સ ત્રિવેશ હતું. તે સન્નિવેશનુ (કરબાનું) वन यानगरीन वन प्रभारी समसपु. “तत्थ ण विभेले सनिवेसे जहा चमरस्सव जा उववन्ना" ते मिसेस सनिवेशमा परस्पर सहाय
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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