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________________ - १०६ भगवतीस पलाशकं नाम चैत्यम् उद्यानम् आसीत् , अस्य वर्णनं पूर्णभद्रचैत्यवर्णनव बोध्यम् , स्वामी-महावीरः प्रभुः समवसृतः यावत् धर्मोपदेशं श्रोतुं पर्पत् निर्गच्छिति, धर्मोंपदेशं श्रुत्वा पर्पत् प्रतिगता । तेणं कालेणं, तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स, जेढे अंतेवासी इंदभूईनामं अणगारे जाव उड़ जाण जाव विहरइ' तस्मिन् काले, तस्मिन् समये श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य ज्येष्ठोऽन्तेवासी इन्द्रभूति म अणगारो यावत् ऊध्वजानुः यावत् संयमेन तपसा आत्मानं भावगन् विहरति । तेणं कालेणं, तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सामहत्थीनाम अणगारे पगइभदए, जहा रोहे जाच उड्डजाण जाव विहरइ' नगरी के वर्णन की तरह से जानना चाहिये 'दूतिपलासए चेहए' लामी समोसढे, जाव परिसा पडिगया' उसमें दृतिपलाश नामका उद्यान था. इसका वर्णन भी पूर्णभद्र उद्यान के वर्णन की तरह जानना चाहिये. वहां महावीर प्रभु पधारे. यावत् धर्मोपदेश सुनने के लिये परिपदानिकली, वह धर्मोपदेश लुनकर पीछी अपने स्थानपर आगई. 'तेणं कालेण तेण समएण समणस भगवओ महावीरस्स जेट्टे अंतेवासी इंदभूई नाम अणगारे जाव उई जाणू जाव विहरह' उस काल में और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के बडे शिष्य इन्द्रभूति नाम के अनगार थे. यावत् ये ऊर्वजानु थे, यावत् संयम और तपसे अपनी आत्मा को भावित करते हुए रहते थे। 'तेण कालेण तेण समएण समणस्स भगवओ महावीररस्स अंतेवासी सामहत्थी नाप्न अणगारे पगभद्दे, जहा रोहे जाच उड्डे जाणू जाव विहरइ' उस काल और उस समय में "दूतिपलासए चेइए" मा ति५माश नामे यैत्य हेतु: तेनु न ५ भद्र यत्यना वन प्रभारी सभा'. ' सामी समोसदे, जाव परिसा पडिगया" त्यां महावीर પ્રભુ પધાર્યા. તેમનો ધર્મોપદેશ શ્રવણ કરવાને પરિષદ નીકળી, વંદણા નમસ્કાર शधापहेश श्रव ४शन परिष४ पाछी १२ तेण कालेणं तेणं समएण समणस्स भवगओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूई नाम अणगारे जाव उड़ जाणू जाव विहरइ" ते अणे म त समये श्रम लगवान भ७ वा२ना पट्टशिष्य छन्द्रभूति નામના અણગાર હતા. તેમનું સમસ્ત વર્ણન અહીં ગ્રહણ કરવું. “ઉદર્વજાનુ हुता" मा सूत्रांश पर्यन्तनु मना विषनु समस्त ४थन "जाव (यावत) પદથી ગ્રહણ કરવાનું કહ્યું છે. એવા તે ઈન્દ્રભૂતિ અણગાર (ગૌતમ સ્વામી) સંયમ અને તપથી પિતાના આત્માને ભાવિત કરતા વિચરતા હતા. __"वेणं कालेण तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्त जेठे अतेवापी सामहत्थी नाम भणगारे पगइभद्दे, जहा रोहे जाव उड़े जाणू जाव विहरह" ते
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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