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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श०२ ७०३३ सू०१३महावीरवाक्य प्रति जमलेरश्रद्धानि ५६९ महावीरे जमालिस्स अणगारस्स दोच्चंपि तच्चंपि एवमहं णो आढाइ जाव तुसिणीए संचिठ्ठा' ततः खलु श्रमणो भगवान महावीरो जमालेरनगारस्य द्वितीयमपि वार तृतीयमपि वारम् एतमर्थ पञ्चशतानगारैः सह बहिर्जनपदविहाररूपीथें नो आद्रिय ते, यावत् नो वा तमर्थ परिजानाति उपेक्षाबुद्धया नानुमोदयति, अपि तु तूबणी सतिप्ठते मौनं समालम्बते, 'तए णं से जमाली अणगारे समर्ण भगवं महावीरं वंदइ, णमंसइ, वदित्ता, णमंसित्ता, समगस्सल भगवओ महावीरस्स अंतियाओ वहुसालाओ चेहयाओ पडिणिक्खमइ ' ततः खलु स जमालिरनगारः 'मौनं सम्मतिलक्षणम्' इति मनसि निधाय श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्यित्वा, श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिकात्-समीपात् बहुशालकात् चैत्यात् - उद्यानात् , प्रतिनिष्क्राम्यति-निर्गच्छति, 'पडिणिदोच्चपि तच्चपि एयमढ णो आढाइ, जाव तुसिणीए सचिट्ठह ' परन्तु श्रमण भगवान महावीर प्रभुने जमालि अनगारके इस दुबारा तिवारा भी कहे गये वक्तव्यको स्वीकार नहीं किया उस पर ध्यान नहीं दिया उसे उचित नहीं समझा-इसलिये केवल वे मौन ही रहे 'तएणं से जमाली अणगारे समणं भगवं महाबीरं वदह, मंसइ, वंदित्ता णमं. सित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाभो बहुलालाओ चेहयाओ पडिणिक्खमह' जब जमाली अनगारले ऐसा देखा तो उन्होंने श्रमण भगवान् महोवीरको वन्दना की, उन्हें नमस्कार किया और धन्दना नमस्कार करके ने श्रमण भगवान् महावीर के पास से और उस बहुशालक उद्यानसे विहार किया यह समझकर कि प्रभुने हमें पांचसौ साधुओं के साथ विहार करने की " मौनं सम्मतिलक्षणं " के णो आढाइ, जाव तुसिणीए सचिदुइ ” परन्तु श्रम लगवान महावीरे भी અને ત્રીજી વાર પૂછવામાં આવેલ જમાલી અણુગારની તે વાતને આદર ન કર્યો, તેની તે વાતને અનુચિત ગણીને તેમણે તે વાતની અનુમતિ ન આપી અને તે વાતને ઉચિત નહીં ગણીને જવાબ આપવાને બદલે મૌન જ રહ્યા. " तएणं से जमाली अणगारे समणं भगव' महावीर वंदइ, णमंसइ, वदित्ता णमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीररस अंतियाओ बहुसालाओ चेइयाओ पडि. शिक्खमा" प य ५.२ ५७॥ छतां ५ मडावी२ प्रसुनी ज्ञान भजवाथी “ मौन सम्मतिलक्षणं " भौन समतिनु सक्षा छ मे न्याय અનુસાર “આજ્ઞા મળી ગઈ છે એમ માનીને જમાલી અણગારે શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વદણ નમસ્કાર કર્યો. વઘણા નમસ્કાર કરીને તેઓ '૫૦૦ સાધુઓ સાથે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર પાસેથી અને તે ગુણશીલક
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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