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________________ प्रसैयचद्रिका टीका श०९ उ०३३ ०८ जमालिवक्तव्यनिरूपणम् टीका संचाएंति विसयाणुलोमाहिं बहुहिं आघवणाहिय, पण्णवणाहिय, सन्नवाहिय, विन्नवणाहिय' ततः खलु तं जमालि क्षत्रियकुमारम् अम्वापितरौ यदा नो शक्तः -नो समर्थो भवतः विषयानुलोमाभिः विषयाणां शब्दादीनामनुलोमाः तेषु प्रवृत्तिजनकत्वेन अनुकूलाः विषयानुलोमास्ताभिः विषयानुकूलाभिः वह्नीभिः आख्यापनाभिश्च सामान्यतः कथनैः प्रज्ञापनाभिश्व विशेषकथनैः संज्ञापनामिव संबोधनाभिः, विज्ञापनाभिश्च सप्रणयमार्थनाभिः ' आघवेत्तएवा, पन्नवेत्ता, सन्नवेत्तवा, विन्नवेत्तएवा' आख्यापयितुं वा सामान्यतः कथयितुं प्रज्ञापयितुं वा विशेषतः कथयितुं, संज्ञायितुं वा संबोधयितु, विज्ञापयितुं वा प्रणयपूर्वकं प्रार्थयितु नो शक्तः नो समर्थो भवतः ' ताहे पिडकूलाहिं संज - ४७७ " 'तरणं तं जमालि खत्तियकुमार अम्मताओ जाहे नो पण्णव ' टोकार्थ - तणं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मताओ जाहे नो संचाएंति विसयाणुलोमाहि बहुहिं आघवणाहिय, णाहिय सन्नवणाहि य, विन्नवणाहि य' इस तरह जब जमालि क्षत्रिकुमारको उसके मातापिता विषयोंकी ओर आकर्षित करनेवालीशब्दादि विषयों में प्रवृत्ति करानेवाली - अनुकूल अनेक उक्तियों द्वारा, प्रज्ञापनाओं द्वारा विशेष कथनों द्वारा, संज्ञापनाओं - संबोधनों द्वारा, और विज्ञापनाओं - सप्रणय प्रार्थनाओं द्वारा ' आघवेत्तए ' सामान्य रूप से समझाने में समर्थ नहीं हो सके, 'पनवेत्तर' विशेष रूप से सम झाने में समर्थ नहीं हो सके, 'सन्नवेत्तए' संबोधित करने में समर्थ नहीं हो सके 'चिन्नवेन्तएवा' और प्रणयपूर्वक प्रार्थना द्वारा भी अपने ध्वेयसे विचलित करनेके लिये समर्थ नहीं हो सके (यहां समर्थ नहीं हो सके ऐसा अर्थ 'नो संचाएति ' इस क्रियापदको सम्बन्धित कर टीडार्थ — " तएण त जमालि खत्तियकुमार अम्नताओ जाहे नो संचारति विसयाणु लोभाहि बहूहि आवणाहिय, पण्णत्रणाहिय, सन्नवणाहिय, चिन्नत्रणादि य" આ રીતે વિષયેની તરફ આકર્ષનારી-શબ્દાદિ વિષયે મા પ્રવૃત્તિ કરાવનારી–અનેક ઉક્તિયા દ્વારા,પ્રજ્ઞાપના દ્વારા ( વિશેષ કથના દ્વારા ), સજ્ઞાપના એક દ્વારા ( સમેધના દ્વારા ) અને વિજ્ઞાપના ( સપ્રય પ્રાના ) દ્વારા જ્યારે પેતાના પુત્ર જમાલીને ३ये सभग्नवत्राने समर्थन थयो, “पन्नवेत्तए " विशेष ३ये सभभवपाने समर्थ न थयां, “पन्नवेत्तए " સમેાષિત કરવાને સમર્થ ન થયા, અને “विन्नवेत्तर वा " प्रयपूर्वी विनंति याने असावासा द्वारा पशु तेना ध्येयमांथी वियसित वराने समर्थन थयां, ( नो सचाएति " यापन સબધ નેડીને અડી દરેક પદની સાથે “ સમથ ન થયા ” એવા અ (6 आधवेत्तए સામાન્ય ܕܐ
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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