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________________ भगवती चउण्डं चउक्कसंजोगो भाणिओ तहा पंचण्हवि चउकसंजोगो भाणियब्यो, नवर अन्भहियं एगो संचारेयव्यो' एवं पूर्वोक्तरीत्या यथा चतुर्णा नैरयिकाणां चतुष्कसंयोगो भणितस्तथा पञ्चानामपि नैरयिकाणाम् चतुष्कसंयोगो भणितव्यः, किन्तु नवरं चतुर्णा चतुष्कसंयोगापेक्षया पञ्चानां चतुष्कसंयोगे एकोऽभ्यधिकः संचारयितव्यः संचारणीयः पञ्चानां चतुष्कसंयोगस्य अन्तिम विकल्प सूचयितुमाह' एवं जाव अहवा दो पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत्-अथवा द्वो पङ्कमभायाम् , एको धूमप्रभायाम् , एकस्तमः प्रभायाम् , एकोऽधः सप्तम्यां भवति, अत्रापि मध्यमाः विकल्पाः स्वयमूहनीयाः, ग्रन्थ विस्तरभिया नेह प्रपञ्चिताः, इति पञ्चानां नरकचतुष्कयसंयोगे प्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं, (एवं जहा च उण्हं चउक्कसंयोगो भणिओ, तहा पचण्हं वि चउक्क संजोगो भाणियबो नवरं अन्भहियं एगो संचारेयव्यो) पूर्वोक्त रीति के अनुसार जैसा चार नारकों का चतुष्क संयोग कहा गया है उसी तरह से पांच नारकों का चतुष्क संयोग कहना चाहिये, किन्तु चार नारकों के चतुष्क संयोग की अपेक्षा पांच नारकों के चतुष्क संयोग में एक का अधिक रूप से संचार करना चाहिये । पांच नारकों के चतुष्क संघोग के अन्तिम विकल्प को सूचित करने के निमित्त (एवं जाच अहवा दो पंकप्पाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा) इस सूत्र को सूत्रकार ने कहा है पूर्वोत्तरीति के अनुसार यावत् अथवा-दो पंकप्रभा में, एक नारक धूमप्रभा में, एक नारक तमः प्रभा में, और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है यहां पर भी मध्यम विकल्प अपने आप चउण्हं चउकसंयोगो भणिओ, तहा पचण्हं वि चउक्कसंजोगो भाणियव्यो, नवर अन्भहियं एगो सचारेयव्वो” पडत रीते या२ नाना यतु सया કહેવામાં આવે છે, એ જ રીતે પાંચ નારકોને ચતુષ્કસંયોગ પણ કહે જોઈએ પરંતુ ચાર નારકેના ચતુષ્કસંગ કરતાં પાંચ નારકના ચતુષ્કસગમાં એકને અધિકરૂપે સંચાર કરે જઈએ. પાંચ નારકેને ચતુષ્કસંગી છેલ્લે ભાંગે આ પ્રમાણે બને છે " एवं जाव अहवा दो पकपभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहे सत्तमाए होज्जा" अथवा मे ना२। ५४मामा, मे ना२४ धूमप्रमामा, मे નારક તમ પ્રભામાં અને એક નારક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. અહીં પણ મધ્યમ વિકલ્પ વાચકે પિતાની જાતે જ સમજી લેવા. ગ્રન્થવિસ્તાર
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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