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________________ प्रमैयचन्द्रिका oc ९ १०३२ सू०४ भवान्तरप्रवेशननिरूपणम् ३३ वालुकाममायाम् , एका पक्षमभायाम् , भवति १३ ' एवं जाय अइया दो रयणपभाए, एगेसकरप्पनाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे अहे सत्तमार होन्जा १४ ' अथवा द्वौ रत्नपभायाम् , एकः शर्करामभायाम् , एको वालुकाप्रभायाम् एको धूमममायाम् , भवति १४,अथवा द्वौ रत्नप्रभायाम् , एक शकरामभायाम, एको वालुकाप्रभायाम ,एकस्त. मपभायां भवति १५, अथवा द्वौ रत्नप्रभायाम् , एकः शर्करामभायाम् , एको वालुकामभायाम् , एकोऽधः सप्तम्यां भवति १६, 'अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पमाए, एगे पकप्पभाए, दो धूमप्पभाए, होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायाम एकः शर्करामभायाम् , एका पड्कप्रमायाम् , द्वौ धूममभायाम् , भवतः, 'एवं जहा प्रभा में और एक नारक पंकप्रभा में उत्पन्न हो जाता है १३, (एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे वालपप्पभाए एगे अहे सत्तमाए होज्जा) अथवा दो नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रमा में, एक वालुकाप्रभा में, और एक नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है १४, अथवा दो नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में, और एक नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है १५, अथवा दो नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में, और एक नारक अधः सप्तमी पृथिवी में उत्पन्न हो जाता है १६ (अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, दो धूमप्पभाए होज्जो) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक पंकप्रभा में, और दो नारक धमछ " ॥ २-१-१-१ ३५ याथा विपन। ५९ it छे “ एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, एगे अहे सत्तमा होजा" (२) अथवा मे ना२४ २त्नप्रमामा, मे ना२४ २४२१मामा, નારક વાલુકાપ્રસામાં અને એક નારક ધૂમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૩) અથવા બે નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શર્કરા,ભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામા અને એક નારક તમ.પ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે (૪) અથવા બે નારક રનપ્રભામાં, એક નારક શર્કરામભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામા અને એક નાર, નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. આ રીતે પહેલી ત્રણ પૃથ્વીઓ સાથે પછીની પૃથ્વીના કુલ ૧૬ ભાંગા થાય છે. " अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, एगे पकप्पभाए, दो धमप्पभाए होज्जा" म24 मे ॥२४ २त्नमामा, मे ना२४ शशलामा, मे ना२४ ५४अमामा मन में ना२४ धूमप्रामi Grपन्न थाय छे. “एवं जहा
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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