SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रन्द्रिका टी० श०५ ४० ३२ सू० ४ भवान्तरप्रवेशन कनिरूपणम् १३१ भायाम्, द्वौ वालुकाप्रभायाम्, एकः पङ्कमभायां भवति १, ' एवं जात्र अहे सत्तमाए ' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत् - अथवा - एको रत्नप्रभायाम्, एकः शर्करा - प्रभायाम्, द्वौ पङ्कप्रभायाम्, eat धूमप्रभायां भवति २, अथवा एको रत्नप्रभायाम्, एकः शर्कराप्रभायाम्, द्वौ धूमप्रभायाम्, एकस्तमः प्रभायां भवति ३, अथवा एको रत्नप्रभायाम्, एकः शर्कराप्रमायाम्, द्वौ तमःप्रभायाम्, एकोऽधः सप्तम्यां भवति ८, ' अहवा एगे रयणप्पभाएं, दो सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पङ्कष्पभाए होज्जा' अथवा एको रत्नप्रभायां द्वौ शर्कराप्रभायाम्, एगे पंक पाए होज्जा) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कप्रभा में, दो नारक वालुकाप्रभा में और एक नारक पंकप्रभा में उत्पन्न हो जाता है १, ( एवं जाव अहे सत्तमा ए ) अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराभा में दो तारक पंकप्रभा में, और एक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाता है २, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में, दो नारक धूमप्रभा में और एक नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाता है ३, अथवा एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्क प्रभा में दो नारक तमः प्रभा में और एक नारक अधः सप्तमी में उत्पन्न हो जाते हैं ४ (८) ( अहवा एगे रयणप्पभाए दो सक्करप्पभाए, एगे वालुयपभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा ) यह कथन तृतीय विकल्प की अपेक्षा से है अथवा - एक नारक रत्नप्रभा में उत्पन्न हो जाता है, दो नारक शर्कराप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं, एक नारक बालुकाप्रभा में उत्पन्न हो जाता है और एक नारक पंकप्रभा में उत्पन्न हो जाता है १, हवे जील विश्पना यार लगाओ। आप्रभा छे - " अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए" अथवा मे ना२४ २त्नयलाभां એક નારક શરાપ્રમામાં, એ નારક વાલુકાપ્રભામાં અને એક નારક પ કપ્રભામાં उत्पन्न थाय छे. “एवं जात्र अहे सत्तमाए " ( २ ) अथवा शेड ना२४ रत्नप्रलाभां, मे નારક શર્કરાપ્રભામા, એ નારક વાલુકાપ્રભામાં અને એક નારક ધૂમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે. (૩) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શર્કરાપ્રભામાં, એ નારક વાલુકાપ્રભામા અને એક નારક તમ.પ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે (૪) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શરાપ્રભામાં, એ નારક વાલુકાપ્રભામાં અને એક નારક નીચે સાતમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. अवा एगे रयणप्पभाए, दो सक्करपभाए, एगे बालुयप्पभाए एगे पंकप्पभाए होज्जा નારક રત્નપ્રભામાં, ખ નારક શરાપ્રભામાં, એક નારક " (१) मथवा भेड વાલુકાપ્રભામાં અને
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy