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________________ भगवती १३० प्रभायाम् , एको वालुकाप्रभायां, द्वौ पङ्कप्रभायां भवतः, ' एवं भाव अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पसाए, एगे बालुयप्पभाए. दो अहेसत्तमाए होज्जा' एवं पूर्वोक्तरीत्या यावत् -अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः शर्करामभायाम् , एको वालुकाप्रमायाम् , द्वौ धूमप्रभायां भवतः, अथवा एको रत्नप्रभायाम्, एकः शकेराममायाम् , एको वालुकाप्रभायाम् , द्वो तमःप्रभायां भवतः अथवा एको रत्नप्रभायाम् , एकः शर्करामभायाम् , एको वालुकामभायाम् , द्वौ अधः सप्तम्यां भवतः ४, 'अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो वालयप्पभाए, एगे पङ्कप्पभाए होज्जा' अथवा एको रत्नमभायाम् , एकः शकरा. में से एक नैरयिक रत्नप्रभा में, एक नैरयिक शर्कराप्रभा में, एक नैरयिक वालुकाप्रभा में और दो नैरथिक पंकप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं १, ( एवं जाव अहवा एगे रयणप्प लाए, एगे सकरप्पभाए, एगे वालुयप्प भाए,दो अहे सत्तमाए होज्जा)इसी तरह से यावत् अथवा एकनारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में एक नारक वालुकाप्रभा में और दो नारक अधः सप्तमी में उत्पन्न हो जाते हैं। यह अन्तिम ४ चौथा विकल्प है इसके बीच के दो विकल्प इस प्रकार से हैं-अथवा-एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक वालुकाप्रभा में और दो नारक धूमप्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं २, अथवा-एक नारक रत्नप्रभा में, एक नारक शर्कराप्रभा में, एक नारक वालुका प्रभा में और दो नारक तमः प्रभा में उत्पन्न हो जाते हैं ३, चौथा भंग ऊपर लिखा जा चुका है (अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे सकरप्पभाए, दो वालुयप्पभाए दो पकप्पभाए होज्जा” (१) 424 पांय नारीमान से ना२४ २नमामी, એક નારક શક રામભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામાં અને બે નારક પંકપ્રભામાં उत्पन्न थाय छे. “ एव जाव अहवा एगे रयणप्पभॉए, एगे सक्करप्पभाए, एगे वालयप्पभाए, दो अहे सत्तमोर होज्जा" मे प्रमाणे मन्तिम या वि४६५ આ પ્રમાણે બને છે અથવા એક નારક રતનપ્રભામાં, એક નારક શર્કરામભામાં એક નારક વાલુકાપ્રભામાં અને બે નારક અધાસપ્તમી નરકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. હવે વચ્ચેના બે વિકલ્પ પ્રકટ કરવામાં આવે છે–(૨) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શર્કરાપભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામાં અને બે નારક ધુમપ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે (a) અથવા એક નારક રત્નપ્રભામાં, એક નારક શરામભામાં, એક નારક વાલુકાપ્રભામાં અને બે નારક તમ પ્રભામાં ઉત્પન્ન થાય છે એથે ભાંગે ઉપર આપવામાં આવી ચુકી છે.
SR No.009318
Book TitleBhagwati Sutra Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size40 MB
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