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________________ प्रमेयचन्द्रिका टो० ०८ उ०८ सू०४ सांपरायिककर्मयन्धमस्वरूपनिरूपणाम् ८१ टोका-'संपराइयं णं भंते ! कम्मं किं नेरइयो बंधइ ? ' गौतमः पृज्छति-हे भदन्ता गांपरायिकं खलु कर्म संपरैति-संसारंपर्यटति जीवएभिरिति संपरायाःकपायाः, स्तेषु सवं सांपरायिक तच्चकर्म किं नैरयिको बध्नाति १ 'तिरिकाखजोणिओ बंधइ, जाव देवी बधइ ?' किंवा तिर्यग्योनिको बध्नाति ? यावत्-किं वा तिर्यग्यो. निकी बध्नाति ? किं वा मनुष्यों,बध्नाति ' किं वा मनुपी वध्नाति ' किंवा देवो बध्नाति, किं वा देवी वनाति ? इति सप्त प्रश्नाः । भगवान् माह-'गोयमा ! नेरइओ वि बंधइ ' हे गौतम ! सांपरायिकं कर्म नैरयिकोऽपि बध्नाति, 'तिरिक्ख टीकार्थ~सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा सांपरायिक कर्म बंध के विषय की वक्तव्यता का कथन किया है-संपराय शब्द का अर्थ कषाय है क्यों कि जीव कषाय के निमित्त से ही संसार में परिभ्रमण करता है "संपरैति संसारं एभिः संपरायाः " ऐसी संपराय की व्युत्पत्ति है इन कषायों के होने पर जो कम होता है वह सांपरायिक कर्म है । इस कमें के पंध का नाम सांपरायिक कर्म बंध है गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है "संपराइयं णं भंते ! कम्मं किं नेरइयो बंधइ" हे भदन्त ! सांपरायिक कर्म का बंध कौन करता है-क्या नारक करता है ? (तिरिक्खजोणियो बंधइ ) या तिर्यग्योनिक जीव करता है ? (जाव देवी बंधा ) यावत् देवी करती है ? यहां यावत् शब्द ले "या तिर्यच स्त्री करती है, या मनुष्य करता है, या मनुष्य स्त्री करती है, अथवा देव करता है।" इस पाठ का ग्रहण हुआ है। इस प्रकार से ये सात प्रश्न हैं। इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-( गोयमा) हे गौतम! (नेरइओ वि बंधा) ટીકાર્ય– સૂત્રકારે આ સૂત્ર દ્વારા સાંપરાઈક કર્મબંધના વિષયનું નિરૂપણ કર્યું છે સંપાય એટલે કષાય. તે કષાયને કારણે જ જવને સંસારમાં પરિभ्रम ४२ ५४ छ. “ संपरैति संसार एमि संपराया " सेवी संपरायनी વ્યુત્પત્તિ થાય છે આ કષાયનો સદ્ભાવ હોવાથી જે કર્મ બંધાય છે તેને સાંપરાયિક કર્મ કહે છે. અને તે કમને બ ધનું નામ સાપરાયિક કર્મબંધ છે હવે તે કર્મબંધ વિષે ગૌતમસ્વામી મહાવીર પ્રભુને નીચેના પ્રશ્નો પૂછે છે– " सपराश्यं णं भते! क्म्म कि नेइओ बंधइ ? " महन्त ! सांप।यि ४मना ५५ ४३ छ-शु ना२४ ४२ छ ? “तिरिक्खजोणि मो बधा" तियय योनाना ४ ४२ छ ? “ जाव देवी व धइ” तिय य योनीमा स्त्री કે મનુષ્ય કરે છે કે મનુષ્ય સ્ત્રી કરે છે? કે દેવ કરે છે ? કે દેવી કરે છે? બા પ્રકારના સાત પ્રશ્નો અહીં પૂછવામાં આવ્યા છે,
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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