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________________ भगवती सूत्रे ८० सपर्यवसितं बध्नाति १, अनादिकं वा सपर्यत्रसितं बध्नातिर, अनादिकं वा अपर्यवसितं बध्नाति४, नो चैव खलु सादिकम् अपर्यवसितं वध्नाति२, तद् भदन्त ! किं देशेन देशं बध्नाति, एवं यथैव ऐर्यापथिकवन्धकस्य यावत् सर्वेण सर्वे वध्नाति ॥ मु० ४ ॥ इस सपरायिक कर्म को क्या सादि सपर्यवसितरूप में बांधता है ? इत्यादि प्रश्न ऐर्याfपथिक कर्म के बांधने के विषय में जैसे किये गये हैं। वैसा ही यहां पर भी करना चाहिये । (गोयमा) हे गौतम! (साइयं वा सपज्जवलियं बंधइ, अणाइयं वा सपज्जवसियं बंधइ, अणाइयं वा अपज्जवलियं बंध, णो चेव णं साइयं अपज्जवसियं बंधइ ) हे गौतम! इस कर्म को जीव सादि सपर्यवसित बांधता है, अनादि सपर्यवसित sita है और अनादि अपर्यवसित बांधता है परन्तु सादि अपर्यवसित रूप से नहीं बांधता है । (तं भंते । किं देसेणं दे बंधह ) हे भदन्त | जीव उस कर्म को जो बांधता है सो क्या अपने एक देश से उसके एक देश को बांधता है ? इत्यादि प्रश्न पहिले की तरह यहां पर भी करना चाहिये । ( एवं जहेव ईरिया वहिया बंधगस्स जाव सव्वेणं सव्वं वंभइ) हे गौतम! जैसा कथन पहिले ऐर्यापथिक कर्म के बंध के विषय में कहा गया है, वैसा ही उत्तररूप कथन यहां पर भी जानना चाहिये - यावत् जीव अपने सर्वदेश से इस कर्म को सम्पूर्णरूप से बांधता है । तहेत्र ) डे लदृ'त | शुं व सांप ने साहि सपर्यवसित ३ये जांघे छे ? અહી' પણ ઐર્યાપથિક કર્યાંના બંધ વિષેના પ્રશ્ના જેવાં જ બીજા પ્રશ્નને પણુ समल सेवा ( गोयमा ! ) हे गौतम! ( साइयं वा सपज्जवसिय बधइ, अणाइय वा सपज्जव खियं बधइ, अणाइयं वा अपज्जवसिय बधइ, णो चेव णं' साइयं अपज्जवसिय बांधइ ) आउने व साहि सपर्यवसित ३ये जांघे छे, અનાદિ સપ વસિતરૂપે પણ ખાધે છે, અનાદિ અપર્યવસિત રૂપે પણ ખાંધે છે परन्तु साहि अपर्यवसित ३ गांधतो नथी. (त' भ'ते ! किं देसेण' देतं बधइ०) હે ભદન્ત ! શુ' જીવ પેાતાના એક દેશથી ( અશથી ) તેના એક દેશને माघे छे ? इत्यादि अश्नी हीं पशु पूछवा लेये. ( एवं जद्देव ईरिया - वहिया बंधगस्स जाव सव्वेणं सव्व बधइ ) हे गौतम! पडेसां पर्यापथि કર્મીના ખંધ વિષે જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ ઉત્તરરૂપ કથન सही या समल सेवु. “ જીવ પેાતાના સવ દેશેાથી આ કમને સપૂર્ણ રૂપે जांघे छे." त्यां सुधीनु उथन सहीं ग्रहषु ५२.
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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