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________________ भगवती सूत्रे ૮૨ जोणिओ वि वंध ' तिर्यग्योनिकोऽपि बध्नाति, तिरिक्ख नोणिणी त्रिबंधड़ ' तिर्यग्योनिकी अपिबध्नाति, ' मणुस्सो विबंध ' मनुष्योऽपि वव्नाति, 'मणुस्सी वि बंध ' मनुषी अपि बध्नाति, 'देवो विधइ ' देवोऽपि वनाति, 'देवी वि aas ' देवी अपि बध्नाति इति रीत्या यथा प्रश्नं सप्त उत्तराण्यपि, किन्तु एतेषु मनुष्य मानुषीवर्जाः पञ्च सकपायत्वात् नियमतः साम्परायिककर्मबन्धका एव "भवन्ति, मनुष्य मनुष्यौ तु भजनया, सकषायित्वे सति साम्परायिकं कर्म वनीतः, अकषायित्वे तु नवनीत इत्याशयः । अथ साम्परायिककर्मवन्धमेव स्त्र्याद्यपेक्षया परायिक कर्म का बंध नैरमिक भी करता है, (तिरिक्खजोणिओ वि इ) तिर्यच योनिक जीव भी करता है (तिरिक्खजोणिणी विबंधड़) तिर्यच स्त्री भी करती है ( मणुसो वि बंध) मनुष्य भी करता है, ( मणुस्सी वि बंधइ ) मनुष्य स्त्री भी करती है, (देवो विबंध ) देव भी करता है, (देवी वि बंध) देवी भी करती है इस प्रकार से ये पूर्वोक्त सात प्रश्नों के उत्तर हैं । किन्तु इनमें मनुष्य और मनुष्य स्त्री इनको छोड़कर पांच जीव कषाय सहित होने से नियमतः सांपरायिक कर्म के बंधक ही होते हैं। मनुष्य और मनुष्य स्त्री ये दो सांपरायिक कर्म के बंधक भजना से होते हैं - अर्थात् जब ये कषाय सहित होते हैं तब तो सांपरायिक कर्म वध करते हैं और जब कषाय सहित नहीं होते हैं - तब सांपरायिक कर्म का बंध नहीं करते हैं । अय सूत्रकार आदि की अपेक्षा लेकर सांपरायिक कर्म वध की ही प्ररूपणाकरते ' ८८ महावीरप्रभुना उत्तर- " गोयमा । " हे गौतम! " नेरइओ विवधइ " सांयरायिङ उर्भना अ'ध ना२४ पशु रे छे, “तिरिक्खजोणिओ वि बधइ" तिर्यय ચેાનિક જીવ પણ કરે છે, तिरिक्खजोगिणी वि बंधइ " तिर्य थिशुी पा ४रे छे, “ मणुस्खो वि बधइ " मनुष्य पशु ४२ छे, " मणुस्त्रीनि बधइ " मनुष्य स्त्री या १३ छे, "देवो वि बधइ " हेव पशु रे छे, ' देवी वि ब वइ " सने देवी पाथरे पूर्वेत साते प्रश्नोना उत्तर या प्रमाणे छे. પણ તે સાતેમાંથી મનુષ્ય અને મનુષ્ય શ્રી સિવાયના પાંચ પ્રકારના જીવેા કષાયસહિત હાવાને કારણે નિયમથી જ સાંપરાયિક કર્મીના મ ધક હાય છે. મનુષ્ય અને મનુષ્ય સ્ત્રી વિકલ્પે તેના ખ'ધક હાય છે. એટલે કે જ્યારે તેઓ કષાયયુક્ત હોય છે ત્યારે સાંપરાયિક ક ના ખધ કરે છે પણ જ્યારે કષાય યુક્ત હાતા નથી ત્યારે તેનેા ખધ કરતા નથી. હવે સૂત્રકાર આ આદિની અપેક્ષાએ સાંપરાયિક ક`ધનુ નિરૂપણુ ४२वा निमित्ते नीथेना प्रश्नोत्तरे आये छे" स भले ! किं इत्थी बंध,
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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