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________________ ધરે भगवतीस्त्र यस्प खलु भदन्त ! आयुष्कं तस्य नाम, यस्त्र नाम तस्य आयुष्कम् ? पृच्छा, गौतम ! द्वे अपि परस्परं नियमात् , एवं गोत्रेणापि समं भणितव्यम् । यस्य खलु भदन्त ! आयुष्कं तस्य आन्तरायिकं, यस्य आन्तरायिकं तस्य आयुषकम् ? पृच्छा, गौतम ! यस्य आयुष्कं तस्य आन्तरायिकं स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति, यस्य को भी कहना चाहिये । अर्थात् मोहनीय कर्म के होने पर नाम, गोत्र और अन्तराय नियम से होते हैं। पर इनके होने पर मोहनीय कर्म हो भी और न सी हो-इस तरह से इनके साथ मोहनीय कर्म की भजना जाननी चाहिये । (जस्स णं भंते | आउयं तस्स नाम, जस्स पुण नामं तस्स आउयं पुच्छा) हे भदन्त ! जिस जीव के आयु कर्म है उस जीव के क्या नामकर्म है ? और जिस जीव के नामकर्म है उस जीव के क्या आयु कर्म है ? (गोयमा ! दो वि परोप्परं नियमा) हे गौतम ! ये दोनों कर्म आपस में एक दूसरे के साथ नियम से होते हैं। ( एवं गोत्तण वि समं भाणियवं) इसी तरह से गोत्र के साथ भी कहना चाहिये। (जस्स णं भंते आउयं तस्स अंतराइयं, जस्त अंतराइयं तस्स आउयं पुच्छा) हे भदन्त ! जिस जीव के आयु कर्म है उस जीव के क्या अंतराइयकर्म है और जिस जीव के अन्तराय कर्म है उस जीव के क्या आयुकर्म है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जस्स आउयं तस्स अंतराરાય કર્મ વિષે પણ સમજવું. એટલે કે મોહનીય કર્મ હોય ત્યારે નામ, ગોત્ર અને અંતરાય કર્મ અવશ્ય હોય છે. પરંતુ નામ, ગાત્ર અને અન્તરાય કમ डाय त्यारे मोडनीय भ डाय छे ५५ ५३ भने नथा ५ तु. (जस्सणं भंते ! आउय तस्स नाम, जस्स पुण नाम तस्स आउय पुन्छा) Bard ! જે જીવમાં આયુષ્ય કમને સદભાવ હોય છે, તે જીવમાં શું નામકર્મને સદ્ભાવ હોય છે? અને જે જીવમાં નામકર્મને સદૂભાવ હોય છે, તે જીવમાં શું આયુષ્ય કર્મને સદૂભાવ હોય છે ? (गोयमा!) हे गौतम ! (दो वि परोप्पर नियमा) तमन्न भी से भीतनी साथे अवश्य २ छ. ( एव गोत्तेण वि समं भाणियव्य) मे પ્રમાણે આયુષ્ય અને ગોત્રકમ પણ એકબીજાની સાથે અવશ્ય હોય છે. (जस्स णं भते ! ऑउयं तस्स अंतराइयं, जस्स अतराइयं तस्स आउय पुच्छा) હે ભદન્ત ! જે જીવમાં આયુષ્ય કર્મને સદુભાવ હોય છે, તે જીવમાં શું અંતરાય કમને દુભાવ હોય છે? અને જે જીવમાં અંતરાય કમને સદુઃ माप डाय छ, ते मां शुमायुष्य माना सहला डोय छे ? ( गोयमा ! जस्स आउयं तस्त्र अंतराइयं सिय अत्थि, सिय नथि) गीतम!२ मा
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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