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________________ भगवतीम ५२० खलु भदन्त ! जीवस्य एकैको जीवप्रदेशो दर्शनावरणीयस्य नर्मणः किि एवं यथैव ज्ञानावरणीयस्य तथैव दण्डको भणितव्यो या वैमानिकस्य एवं याद् आन्तरायिकस्य भणितव्यम्, नारं वेदनीयस्य, आयुकस्य, नाम्नः, गोत्रस्य एतेषां चतुर्णामपि कर्मणां मनुष्यस्य नैरयिकस्य तथा भवितव्यम्, शेषं तदेव || मृ० ६ || हो रहा है । (जहा रहयरस एवं जाव माणिक्स्म - नवरं समस्य जहा जीवस्स) जैसा नैरग्रियों के विषय में कहा गया है वैसा ही यावत् वैमानिकों के विषय में भी जानना चाहिये । परन्तु मनुष्यों को जीव की तरह से कहना चाहिये । ( एगमेगस्न णं भते । जीवन एगमंगे जीव एसे दरिसणावरणिजस्स कम्नस्त देवदाहिं०) हे भदन्त ! एक एक जीव का एक एक जीवप्रदेश दर्शनावरणीय कर्म के कितने अरिभाग परिच्छेदों से आवेष्टित परिवेष्टित हो रहा है ? ( एवं जहेब नाणावरणिजस्म तव दंडगो भागको जावमाणित एवं जाव अंतराइयस्स भाणियन्त्रं ) हे गौतम! जिस तरह से जानावरणीय कर्म के विषय में दण्डक कहा गया है उसी तरह से यहां पर भी वत् वैमानिक तक दण्डक कहना चाहिये। इसी तरह से बावत् अन्तरायतक कथन जानना चाहिये । ( नवरं वणिजस्त आयम णामस्स गोयल एएसि च वि कम्मार्थ सणूस जहा तेरहवस्त तहा ष्टित परावेष्टित थ रह्यो होय छे. ( जहा नेrइयरस एवं ला वैमाणियम्स नवर' मणूस जहा जीवरस ) हे गौतम! या विषयने अनुक्षीने नारना વિષે જેવુ કહેવામાં આવ્યું છે, એવુ જ કથન વૈમાનિક દેવા પર્યન્તના જીવ વિષે સમજવું. પણ મનુષ્યના વિષયમાં છવના જેવું કથન સમજવું ( एगमेगस ण भते ! जीवस्स एगमेगे जीवपए से दरिमाणवरणिज्जस्म फम्मस्स केत्रइएहि १) हे महन्त ! ! ! कवनो भेड थोड छपप्रदेश દનાવરણીય કર્મના કેટલા અવિભાથી પરિઅે સાથે આવેષ્ટિત પરિવેષ્ટિત थ रह्यो होय छे ? ( एवं जदेव नाणावरणिजास तत्र दडगो भाणियन्त्रा जान बेमाणियम एवं जाव अंतराइयम्स भाणियन्नं ) हे गौतम! 7 रीते ज्ञानाવરણીય કર્મના વિષયમાં ઉત્તરાલાપક કહેવામાં આવ્યે છે, એ પ્રમાણે વૈમાનિક પન્તના દેવેાના વિષયમાં દનાવરણીય કર્મ વિષેને આલાપક પણુ સમજવે. એજ પ્રમાણેનું કથન અન્તરાય પન્તના કર્માંના વિષયમાં પણ સમ org. (नवर वेयणिजस्स, आउयस्स णामस्स गोयस्स एसि चउं विकम्माणं माणूसम्स जहा नेरइयस्स तथा भाणियन्त्र, सेसं त चेव ) परन्तु वेहनीय, आयु,
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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