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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ उ०१० सू० ६ फर्मप्रकृतिनिरूपणम् . ५२१ टीका--'कड णं भंते ! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कति-किपत्यः खलु कर्मप्रकलयः प्रज्ञप्ताः १ भगवानाह-'गोयमा । अट्ठ क्रम्म पगडीओ पण्णताओ' हे गौतम ! अष्ट कमप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः, ता __ आह-'तं जहा' तद्यथा-'नाणावरणिज्जं जात्र अंतराइयं' ज्ञानावरणीयं, यावत्-दर्शनावरणीयं, वेदनीयं, मोहनीयम् , आयुष्यम् , नाम, गोत्रम् , आन्तभाणियध्वं सेवं तं चेव ) किन्तु वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र इन चार अघातियां कर्मों द्वारा आवेष्टित परिवेष्टित होने का कयन जैसा नैरविकों में कहा गया है वैसा ही मनुष्यों में जानना चाहिये। बाकी का और सत्र कथन पहिले जैसा ही जानना चाहिये। टीकार्थ-पहिले जीवप्रदेशों का निरूपण किया गया है। ये जीवप्रदेश प्रायः कर्मप्रकृतियों से अनुगत-युक्त होते हैं, यहां पर सूत्रकार ले उन्हीं कर्मप्रकृतियों का कान किया है इसमें गौतम ने प्रभु से ऐला पूछा है (कइ णं भंते ! सम्मपगडीओ पण्णताओ) हे भदन्त ! जीव के प्रत्येक प्रदेशों को आवृत्त करने वाली कर्मप्रकृतियां कितनी कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रयु कहते है-(गोयमा ! अg कम्मपगडीओ पण्णताओ) हे गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई हैं। (तं जहा) जो इस प्रकार से हैं-(नाणावरणिजं जाय अंतराइयं ) ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और आन्तरायिक। નામ અને ગોત્ર, એ ચાર અઘાતિયા કમ દ્વારા આવેષ્ટિત પરિવેષ્ટિત થવાનું કથન જેવું નારકેના વિષયમાં કહ્યું છે, એવું જ મનુષ્યોમાં પણ સમજવું. બાકીનું સમસ્ત કથન પહેલાના કથન (જ્ઞાનાવરણયના કથન) પ્રમાણે જ સમજવું ટીકાર્થ–પહેલાં જીવપ્રદેશોનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યું. તે જીવપ્રદેશ સામાન્ય રીતે કર્મ પ્રકૃતિથી અનુગત (યુક્ત) હોય છે. તે સંબંધને અનુલક્ષીને સૂત્રકારે અહીં કર્મ પ્રકૃતિનું કથન કર્યું છે. આ વિષયને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી મહાવીર પ્રભુને આ પ્રમાણે પ્રશ્ન પૂછે છે – (कहणं भंते ! कम्मपबढीओ पण्णत्ताओ ? ) हे महन्त ! अपना प्रत्ये પ્રદેશોને આવૃત્ત કરનારી કમં પ્રકૃતિ કેટલી કહી છે? તેને ઉત્તર આપતા महावीर प्रभु ४९ छ -" गोयमा । ” गौतम ! “ अट्ठ कम्मपयडी श्री पण्णत्ताओ" प्रतियो18 ४४ी छे “ तंजहा " मनां नाम नये प्रमाणे छे-( नाणावर णिज्ज जार अंतराइय) (१) ज्ञाना१२०ीय, (२) शनावरणीय, (3) वेदनीय, (४) मा नाय, (५) मायुष्य, (१) नाम, (७) गोत्र भने (८) मन्तराय.
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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