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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ८ उ० ९ सू० ३ प्रयोगयन्धनिरूपणम् २०५ अन्तर्मुहूर्तम् , उत्कर्षेण संख्येयं कालं तिष्ठति पश्चात् विध्वंस प्राप्नोति । से तं आलावणबंध' स एष आलापनवन्धः प्रज्ञप्तः। अथ, आलीनबन्धमाह-' से किं तं अल्लियावणवंधे ?' हे भदन्त ! अथ कः , कतिविधः आलीनवन्धः प्रजातः ? भंगवानाह-' अल्झियावणवंधे चउबिहे पण्णत्ते' हे गौतम ! आलीनबन्धश्चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, 'तं जहा-लेसगावचे, उच्चयबंधे, समुच्चयवधे, साहणणाधे' तद्याश्लेपणाबन्धः, उच्चयवन्धः, समुच्चयबन्यः संहननबन्धश्च, तत्र लेपगा- लेपण द्रव्ययोः संपोजनं, तद्रूपो बन्धः लेपणाबन्धः१, एवम् उच्चयः-ऊर्ध्व चयनं राशीकरणं, तद्रूपो बन्या उच्चयवन्धः२, तथा संसगतः उच्चयापेक्षया विशिष्टतरः उच्चयः - समुच्चयः, तद्रूपो बन्धः समुच्चयबन्धः३, एवं संहननम्-अवयवानां. संशातनं समूहः रहता है । इसके बाद वह नष्ट हो जाता है । ऐसा कथन आलापनवध के विषय में तीर्थंकरादिकों ने किया है। अब आलीनवन्ध का क्या स्वरूप है इस विषय में गौतमस्वामी प्रभु से पूछते हैं-से कि त अल्लियावर्गबंधे 'हे भदन्त ! आलीनबंध कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहने हैं-' अल्लियावणधे चउविहे पण्णत्ते ' हे गौतम ! 'आलीनवध चार प्रकार का कहा गया है-' तं जहा.' जैसे-'लेलणा'पंधे, उच्चयबंधे, समुच्चयबधे, साहणणावधे' श्लेषगाबंध, समुच्चय पंध और संहननबंध दो द्रव्यों का आपसमें किसी श्लेषपदार्थ से जोड़ना 'इसका नाम श्लेषणाध है, रोशी करनेरूप जो बंध होता है वह उच्चयबंध है। उच्चय की अपेक्षा जो विशिष्टनर उच्चय है वह समुच्चयबंध है । अवयवों का जो सनूह है वह संहननबंध है । अर्थात् अवयवों २भ पधारे सध्यात ज सुधी २७ छ. त्या२ मा नाश पामे छ. ( से त्त' आलावणवधे) में उथ भाटापन विधे' ती हमे युछे. गौतभस्वाभाना -(से कि 'तं अल्लियावणमधे ?) महन्त ! આલીનખ ધનું સ્વરૂપ કેવું છે? महावीर प्रभुना उत्तर-(अल्लियावण बंधे चउविहे पण्णत्ते ) 3 गौतम ! मीनमधना र २ छ. (तंजहा) ते शेनी नीय प्रमाणे 2-(लेसणाबधे, उच्चयत्र धे, समुच्चयबधे साहणणाव धे, ) (१) पया मध, (२) स्ययम'ध (3) समुध्ययम अने (४) सहननमध. - બે પદાર્થોને એક બીજાની સાથે કેઈ શ્લેષપદાર્થ વડે જેડાવે તેનું નામ લેષણું બંધ છે. રાશી (ઢગલે) કરવા રૂપ જે બંધ થાય છે તેનું નામ ઉશ્ચય બંધ છે. ઉચ્ચયના કરતાં પણ વિશિષ્ટતર જે ઉચ્ચય છે તેનું નામ
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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