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________________ ૨૦૪ भगवती सूत्रे ; • 11 भगवानाह - ' आलावणवधे जं णं तगभाराग वा, कट्टमाराण वा, पत्तभाराण वा, पोलाराण वा वेल्लमारीण वा, वेळपाचा गवरंत रज्जु वल्लिकुसदर्भमा दिएहिं आधे समुप्पड' आलोपनबन्धों यद खलु तृणवाराणां वा, कांठभुरिणां पत्राणां वा पलालसाराणां वा, धान्यंरहितृणपुञ्जभाराणामित्यर्थः, बेल्लभाराणी वा प्रवालमा राणामित्यर्थ मालवाचको देशीयो वेल्लशब्दः, वेचलता- वल्क वरत्रा-रज्जु -दल्ली -कुश दर्भादयः, तत्र क्षेत्रलता जलवंशकम्बा, बल्कः वल्कलः-त्वचा, वस्त्रा-चर्ममयीरज्जुः, रज्जुराणादिमयी वल्ली पुण्यादिका, कुशा निर्मूलदर्भाः, दर्भास्तु समूलाः, आदिशब्दाचीत्ररादीनां परिग्रहस्तैरित्यर्थः आलापनबन्धः समुत्पद्यते, अवि, सच. आलापनबन्धः ' जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं ' जघन्येन ई आलावणय घे) हे भदन्त | आप कितने प्रकार का है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं - (आलवणव घे जं णं तणभाराणु वा, कहभाराणु वा, पत्तभीराण वा, पलालभारावा, वेल्लभागण वा, वेत्तलयाबागवत रज्जवल्लिकुसुदव्भलाएहिं आलावा चे समुपज्जह ) हे गौतम! - 'भारों का घास के गढ़ों का, काष्ट के भारों का लकडियों के गड्ढ़ों का, पत्र भारों का - पत्तों की गठरियों का, धान्परहित पलाल के भारों का 3 किरक 1.3 G अर्थात् धान्यरहित तृणपुंज भुसा की गठरियों का, लनाओं की गुठरियों का, अथवा-कोपलों की गड़रियों का, जो ब्रेन की छालों से, चुकलों से, वरना - चर्म की बनी हुई रस्सियों से, शन आदि की बनी हुईडोरियों से, निर्मूलदर्भों से, समूलदर्भों से एवं पों की ग्गियों से जो बना होता है वह आलापनबंध है । यह आलापनबंध ' जहणेणं अंतमुहुत्त उक्कोसेणं संखेज्जं काल से त्तं आलावणव थे ? कम से कम अन्तर्मुहूर्त्त तक रहता है, और अधिक से अधिक संख्यात कालतक મધનું સ્વરૂપ કેવું છે? 1 1 महावीरप्रभुने। उत्तर- ( आलावण बधे ज णं तणभाराण वा, कटुभांराण वा पत्तसारण वो पलालभाराण वा, वेल्लभागण वा, वेत्तलयाबागवरत रज्जुवल्लिकुस दभमादिएहि आलोवणप घे समुपज्जइ ) डे गौतम ! धासनी गांसडीखाने, अष्ठेना लाशने, माननी गांसंडीने, सताओनी गांडगोने, अथवा पसानी गांस ઢીઓને જે નેતરની છાાથી, લતાએથી, ચામડાની દોરીથી, શણુના દોરડાથી નિળ દર્ભોથી, સમૂળ દર્ભોથી અને કપડાના લાંભા- ચિંતરડાથી માંધવામાં आवे छे तेने सायन संघ उहे छे ते सासायन मध ( जहणेणं अंत मुहुत्त उकासेण संखेज्ज कालं ) गोछामां मोछो मतभुङ्क्र्त सुधी ने वधा S י
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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