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________________ भगवती १०४ तानेवाह-' तं जहा-दिगिछापरीसहे, पिवासापरीसहे जाव ईसणपरीसहे ' तपथाजिघत्सापरीषहः स एव बुभुक्षापरीपहः, तपोथम् अनेषणीयभक्तपरिहारार्थ मोक्षाभिलापिणा परिपामाणस्वात् बुभुक्षापरीपहः१, एवं पिपासापरीपहः२, यावत्-दर्शनपरीपहोऽपि, यावत्करणात्-३-शीतपरीपहः, ४-उष्णपरीपहः, ५-देशमशकपरीपहः, परीषह वाईल २२ कहे गये हैं। " परितः-समन्तात् स्वहेतुभिः उदीरिता मार्गाच्यवन कर्मनिर्जरार्थ साधुभिः सह्यन्ते इति परीपहाः" यह परीषह शब्द की व्युत्यत्ति है। साधुओं द्वारा जो मार्ग से च्युत न होने और फर्म की निर्जरा के निमित्त सब ओर से अपने हेतुओं द्वारा उदीरित करके सहन करने योग्य हों उनका नाम परीषह हैं । (तं जहा) जो इस प्रकार से हैं-(दिगिछापरीसहे, पिवासापरीसहे जाव दसणपरीसहै) जिघत्सा परिषह-बुभुक्षापरीषह, पिपासा-तृपा परीषह यावत् दर्शनपरीषह; क्षुधा और तृषा की चाहे कैसी भी वेदना हो फिर अंगीकार की हुई मर्यादा के विरुद्ध आहार पानी न लेते हुए समभावपूर्वक ऐसी वेदनाओं को सहन करना सो क्षुधापरीषह और तृषापरीषह है । इन परीषहों को सहन करने का भाव तप संयम की वृद्धि करने के लिये होता है । इसी लिये मोक्षाभिलाषीसाधु अनेषणीय-अमासुक आहार पानी का परित्याग करते हुए तजन्य वेदनाओं को शान्ति के साथ सहन करते रहते हैं। यहां यावत् पद से इन निम्नलिखित परीषहों का संग्रह हुआ है-शीतपरीषह, उष्णपरीषह, दंशमशकपरीषह, अचेलपरीछ-" परितः-समन्तातू स्वहेतुभिः उदीरिता मार्गाच्यवन कर्मनिर्जरार्थ साधुभिः सद्यन्ते इति परीषहाः " साधुसी द्वारा २ भायी श्युत न थवाने निमित्त નિજેરાને નિમિત્તે બધી તરફથી પિતાના હેતુઓ દ્વારા ઉદીરિત કરીને સહન ४२वान योग्य छाय, तभनु नाम पशेष छ. “ त जहा" त पशष नीय प्रभाो छ-"दिगिंछापरीसहे जाव द सणपरीसहे" असापरीष (क्षुधापरीष) પિપાસા (તૃષા) પરીષહ, યાવત્ દર્શનપરીષહ સુધા અને તૃષાની ગમે તેટલી વેદના હોય છતાં પણ અંગીકાર કરેલી મર્યાદાની વિરૂદ્ધ આહાર પાણી નહીં લેતાં સમભાવપૂર્વક એવી વેદનાઓને સહન કરવી તેનું નામ સુધાપરીષહ અને તૃષાપરીષહ છે આ પરીષહાને સહન કરવાને ભાવ ત૫સંયમની વૃદ્ધિ કરવાને માટે થાય છે. તેથી મોક્ષાભિલાષી સાધુઓ અનેષણય–અપ્રાસુક આહાર, પાણને પરિત્યાગ કરીને તેને કારણે ઉદ્ભવતી વેદનાઓને શાતિપૂર્વક સહન या रै छ - मही 'जाव' ( यावत् ) पहथी नायना परीषही अड ४२वामा આવ્યા છે-શીતપરીષહ, ઉણપરીષહ, દંશમશકપરીષહ, અચલપરીષહ, અરતિ
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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