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________________ - - - प्रमेयन्द्रिका 0 ० ८ ७० ८ सू०५ कर्मप्रकृति-परीषहवर्णनम् १०३ अट्ठ कम्मपयडीओ पण्णत्ताओ' हे गौतम ! अष्ट, कर्मप्रकृतयः प्रज्ञप्ताः, 'त जहाजाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं तद्यथा-ज्ञानावरणीयं १, यावत् आन्तरायिकम् , यावच्छब्दात् दर्शनावरणीयम् २, वेदनीयम् ३, मोहनीयम् ४, आयुष्कम् ५, नाम६, गोत्रम्, चेत्येतेषां ग्रहणम् , गौतमः पृच्छति-' कइ ण भंते ! परीसहा. पण्णसा " हे भदन्त ! कति खलु परीषहाः प्रज्ञप्ताः ? परितः समन्तात् स्वहेतुभिरुदीरिता मार्गऽच्यवन-कर्मनिर्जरार्थं साधुभिः सह्यन्ते इति परीपहाः, भगवानाह'गोयमा ! बावीसं परीसहा पण्णत्ता' हे गौतम ! द्वाविंशतिश्च ते परीपहाः प्रज्ञसार, ___टीकार्य-पहिले कर्मवक्तव्यता का प्ररूपण किया जा चुका है। सो अप उन्हीं कर्मों में यथायोग्य परीषहों के अवतार (समावेश) को प्ररूपण करने की इच्छा से सूत्रकार यहां कर्मप्रकृतियों का और परीपहों का वर्णन करते हैं-इस में गौतम प्रभु से ऐसा पूछते है 'कइ णं भते ! कम्मपडीयओ पण्णताओ' हे भदन्त ! सावधानुष्ठानरूप कर्म प्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'अट्ठ कम्म पयडीओ पण्णत्ताओ' कर्मप्रकृतियां आठ कही गई हैं। 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-'णाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं ' ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय । अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(कइणं भंते ! परिसहा पण्णत्ता) हे भदन्त ! परीषह कितने कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा ) हे गौतम ! (बावीसं परीसहा पण्णत्ता) ટીકાર્થ–પહેલાંના પ્રકરણમાં કર્મવતવ્યતાની પ્રરૂપણ કરવામાં આવી છે. હવે તે કર્મોમાં યથાયોગ્ય પરીષહોના અવતારનું (સમાવેશનું) નિરૂપણ કરવા નિમિત્તે સૂત્રકાર અહીં કર્મપ્રકૃતિ અને પરીષહનું વર્ણન કરે છે. આ विषयने अनुलक्षीत गीतभस्वामी भावा२ प्रभुने पूछे छे -" कर णं भते । कम्मपयडीओ पण्णचामो?" महन्त ! साबधानुडान३५ ४५ प्रतिया ४क्षी Bहीतन Sत्तर भापता महावीर प्रभु ४७ -“गोयमा । " गौतम ! " भट्ट कम्मपयहीभो पण्णचाओ" भवतियो २५0 xsी . " व जहा " २ मा प्रमाणे -" णाणावरणिण्जं जाव अतराइयं " ज्ञानापाय, शना१२०ीय, हनीय, माइनीय, मायु, नाम, गोत्र भने अन्तराय. गौतमस्थाभीना प्रम-“कर भंते ! परीसहा पण्णचा!" सन्त। પરીષદે કેટલા કહ્યા છે? महावीर प्रखना उत्तर-" गोयमा!" है गोतम! “वावीसं परीसदा पष्णचा" ५N५२ मा . ५८ शनी गुत्पत्ति नाव प्रभार
SR No.009317
Book TitleBhagwati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages784
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size46 MB
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