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________________ ८५ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. १ सू. ५ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् घ्राणेन्द्रिय-जिह्वेन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणता एव भवन्ति । एवं पज्जत्तगा वि' एवम् अपर्याप्तकवदेव ये पर्याप्तका रत्नप्रभा पृथिवीनैरयिकपञ्चेन्द्रियप्रयोगपरिणताः पुद्गलास्ते श्रोत्रादीन्द्रियपञ्चकमयोगपरिणता एव भवन्ति, ' एवं सवे भाणियन्त्रा' एवं - रत्नप्रभा पृथिवी नैरयकत्रदेव, सर्वे शर्कराप्रभा - वालुकाप्रभा-पङ्कमभा-धूमप्रभा - तमः प्रभा - तमस्तमः प्रमापृथिवीनैरयिकपञ्चेन्द्रियप्रयोगपरिणताः पुद्गलाः पर्याप्तकाः अपर्याप्तकाश्च श्रौत्रादिपञ्चेन्द्रियप्रयोगपरिणता भवन्ति । एवं 'तिरिक्खजोणिय - मणुस्स- देवा जाव' ये तिर्यग्योनिक मनुष्यदेवा यावत् पञ्चेन्द्रियमयोपरिणताः पुद्गलाः प्रज्ञप्तास्ते श्रोत्रादिपञ्चेन्द्रियप्रयोगपरिणता एव भवन्ति ' जाव' इति यावत्पदेन भवनइन्द्रिय, इन पांच इन्द्रियोंके प्रयोगसे परिणत ही होते हैं ' एवं पज्जत्तगा वि' तथा अपर्याप्तककी तरह ही पर्याप्तक रत्नप्रभा पृथिवीगत नैरचिकको पंचेन्द्रियोंके प्रयोग से परिणत हुए पुद्गल भी श्रोत्रेन्द्रियादि पांचों इन्द्रियों के प्रयोग से ही परिणत होते हैं । 'एव सच्चे आणियवा' रत्नप्रभापृथिवी के लैरयिकोंकी तरह से ही अवशिष्ट शर्करा - प्रभा, वालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, तमस्तमःप्रभा पृथिवी के नैरथिकोंकी पांच इन्द्रियोके प्रयोग से परिणत हुए पुद्गल चाहे वे पर्याप्त हों चाहे अपर्याप्तक हों श्रोत्रादिक पाँचों इन्द्रियोंके प्रयोग से परिणत होते हैं । 'तिरिक्ख जोणियमणुस्स देवा जाव' इसी तरह से जो पुद्गल निर्यग्योनिकोंकी, मनुष्योंकी, देवोंकी पांचों इन्द्रियोंके प्रयोगसे परिणत कहे गये हैं वे श्रोत्रादि पांचों इन्द्रियोंके प्रयोगसे કહ્યા છે તે પુન્ગલા શ્રોત્રેન્દ્રિય, ચક્ષુઇન્દ્રિય, ધાણેન્દ્રિય, રસન્દ્રિય અને પેન્શેન્દ્રિયના प्रयोगथी-यांचे न्द्रियाना प्रयोगथी - परिशुत होय छे 'एवं पज्जत्तगा वि' अपर्याप्त નારકાની જેમ પર્યાપ્તક રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નારકની પાચ ઇન્દ્રિયાના પ્રયાગથી પરિણુત પુદગલે પણ શ્રોત્રેન્દ્રિય આદિ પાંચ ઇન્દ્રિયાના પ્રયાગથી પરિણત હાય છે. 'एव सव्वे भाणियन्त्रा' रत्नप्रभा पृथ्वीना नारोनी प्रेस जाडीनी शर्मुरायला, વાલુકાપ્રભા, ૫ કપ્રભા, ધૂમપ્રભા, તમઃપ્રભા અને તમતમાપ્રભા પૃથ્વાંના નારાની પાચ ઇન્દ્રિયના પ્રયોગથી પરિણત થયેલા પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તક પુદગલે પણ શ્રોોન્દ્રિય આદિ પાંચ ઇન્દ્રિયે ના પ્રયેાગથી પરિણત હાય છે 'तिरिक्खजोणिय मणुस्स देवा जाव' ४ प्रभागे ने पुत्गसे। तिर्यथयेोनिष्ठ છવાની, મનુષ્યાની અને દેવાની પાંચે પન્દ્રિયાના પ્રયોગથી પરિણત કહ્યા છે, તે પુદગલે याशु श्रोत्रेन्द्रिय सह पाये इन्द्रियोना प्रयोगथी चरित होय छे सहीं 'जाव (पर्यन्त )
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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