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________________ म. टीका श.८ उ.७ म.१ प्रद्वेषक्रियानिमित्तकान्यतीर्थिकमतनिरूपणम् ७५५ अदूरसामन्ते बहवः अन्ययूथिकाः परिवसन्ति, तस्मिन् काले तम्मिन् समये श्रमणों भगवान् महावीरः आदिकरः यावत् समवसृतः, यावत् पर्षत् प्रतिगता, तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणस्स भगवतो महावीरस्य वहवोऽन्तेशसिनः स्थविरा भगवन्तः जातिसंपन्नाः कुलसंपन्ना यथा द्वितीयशतके यावत् जीविताशा- भरणभयविभमुक्ताः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अदूरसामन्तम् ऊर्ध्वजानवः अधः . शिरसोध्यानकोष्ठोपगताः संयमेन तपसा आत्मान भावयन्ता यावत् विहरन्ति, याने गुणशीलनामका उद्यानका वर्णन (जाब पुढविलिला पट्टओ) यावत् पृथिवीशिलापट्टक था ( तस्स णं गुणसिलस्स चेयरस अदूरसामंते बहवे अनउत्थिया परिबसंति) उस गुणशिलक चैत्य (उद्यान) के आसपास थोड़ी दूर पर अनेक अन्यतीर्थिकजन रहते थे (तेणं कालेणं तेणं समएणं ममणं भगवं महावीरे आदिगरे जाव समास) उस काल और उस समयमें श्रमण भगवान् महावीर जो कि तीर्थ के आदि करने वाले आदि विशेषणों वाले थे वहां पर पधारे (जाव परिसा पडिगया) यावत् धर्मकथा सुनकर परिषद विसर्जित हो गई (तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स अगवओ महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जाइसंपन्ना कुलसंपन्ना जहा वितियलए जाव जीवियासामरणभयविप्पमुक्का समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामन्ते उड्ढं जाणू अहो सिरा झाणकोहोवगया संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणा जाव चिहरंति) उस काल आर उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अनेक शिष्य स्थविर भगवन्त जो कि (जाव पुढविसिलापट्टओ)' या वशमा पट्ट तु,' म सुधीनु परत यन माणु ४२७ (तस्स ण गुणसिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते वहवे अन्नउत्थिया परिवसंत) ते शुशास येत्यनी मासास या ६२ भने अन्यतार्थि सो रहेता हता. (तेण कालेणं तेणं समए समणं भगवं महावीरे आदिगरे जाव समोमढे) તે કાળે અને તે સમયે તીર્થકર આદિ વિશેષાવાળા શ્રમણ ભગવાન મહાવીર ત્યાં પધાર્યા (जाव परिसा पडिगया) या ४२ने प२ि५६ विसति य:, chi सुधान सभरत यन मही डर ४२७ (तेण कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवी महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जाइ संपन्ना कुलसंपन्ना जहा वितियसए जाव जीवियासामरणभयविप्पमुक्का समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामन्ते उड्ढं जाण् अहो सिरा झाणकेट्ठोवगया संजमेण तवसो अप्पाणं भावमाणा जाव विहरंति) ते सगे मने ते समये श्रम भगवान महावीरना અનેક શિષ્ય સ્થવિર ભગવતે, કે જે જાતિસંપન્ન, કુલસંપન્ન આદિ વિશેષાવાળા હતા
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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