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________________ ७०६ भगवतीमु ततः खलु ते अन्ययूथिका येनैव स्थावरा भगवन्तेस्तेनैव उपागच्छन्ति, उपागम्य तान स्थविरान् भगवतः एत्रम् अवादिषुः यूयं खलु आर्याः ? त्रिविधं त्रिविधेन असंयता विरतापतिता यथा सप्तमशतके द्वितीयोदेशके यावत् एकान्तबालाश्चापि भदथ । ततः खलु ते स्थविरा: भगवन्तस्तान् अन्ययूथिकान एवम् अवादिषुःजातिसंपन्न कुलसंपन्न इत्यादि विशेषणों से युक्त थे जैसा कि द्वितीय शतक में वर्णन किया गया है उस माफिक वे यावत् जीवन की - आशा और मरण के भय से रहित थे । उस समय वे श्रमण भगवान महावीर के आसपास ऊँचा घुटना किये हुए और नीचा मस्तक नवाये हुए ध्यानरूप कोठे में विराजमान थे । तथा संयम और तप से अपने आपको भावित किये हुए थे । (तएणं ते अन्नउत्थिया जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति) इसके बाद वे अन्यतीर्थिकजन जहां स्थविर भगवान् विराजमान थे वहां पर आये (उवागच्छिता ते थेरे भगवंते एवं वयासी) वहां आकर उन अन्यतीर्थिकजनोंने उन स्थविर भगवंतो से ऐसा कहा - (तुम्भेणं अजो तिविहं तिविण अविरयप्पडिहय जहा सत्तमसए विइए उद्देमए जाव एतवाले यावि भवह) हे आर्यो ! तुम सब त्रिविध प्राणातिपात आदि को त्रिविधरूप से करते हुए असंयत हो, अविरत हो और अप्रतिहत- पापकर्मवाले हो - इत्यादि जैसा सातवें शतक के द्वितीय उद्देशक में कहा है उस तरह से यावत् एकान्तबाल भी हो । (तएण (તેમના ગુણેાનુ વર્ણન ખીજા શતકમાં આપવામાં આવ્યુ છે), જેઓ જીવનની આશા અને મરણના ભયથી રહિત હતા, એવા તે વિરા શ્રમણુ ભગવાન મહાવીરની આસપાસ ઘૂંટણે ઊચી રાખીને અને નીચે મસ્તકે ધ્યાનરૂપ કામાં વિરાજમાન હતા તેએ सयम मने तथ्थी घोताना आत्माने भावित उरी २ हता. (तरणं ते अन्न उत्थिया जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति) त्यार माह ते अन्यतीर्थ । त्यां ते स्थविर लगव तो मेठा हुता त्या आव्या (उवागच्छित्ता ते थेरे भगवंते एवं वयासी) ત્યા આવીને તે અન્યતાકિ લેકાએ તે સ્થવિર ભગવાને આ પ્રમાણે કહ્યું(तुब्भेणं अज्जो तिविहं तिविहेणं अस जय, अक्रिय, अप्पsिहय जहा सत्त मसर विए उद्देस जाव एगंतवाले यावि भवद ) डे मार्यो ! त्रिविध પ્રાણાતિપાત આદિનું ત્રિવિધરૂપે સેવન કરતા એવા તમે બધાં અસયત છે, અવિરત દેશ, અપ્રતિહત પાપકર્મવાળા છા, પ્રત્યાદિ સમસ્ત કથન સાતમાં શતકના બીજા ઉદ્દેશકમાં કહ્યા પ્રમાણે સમજવું ‘તમે એકાન્તમાલ (સ પૂર્ણરૂપે અજ્ઞાન) પણ છે,
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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