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________________ - - ६५२ . ' .. - . . . . . । भगवतीसूत्रे पलाण्डु-लशुन-कन्द-मूलं विवजकाः तत्र पलाण्डुः (प्याज-कान्दा) इति भाषा प्रसिद्धम् ‘लशुनः-उग्रगन्धः, कन्दः-सूरणादि कन्दः, मूलम्-मूली इति भाषा प्रसिद्धम् । 'अणिल्लंछिएहि अणकभिन्नेहि गोणेहिं तसपाणविवजिएहिं वित्तेहि वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति ' अनिान्छितः लान्छनरहितः अबद्धितकैः अकृतनपुंसकैः एवम् अनासिकाभिन्नैः अनास्तितः नासाछेदरहितैरित्यर्थः, गोभिः वलीवर्दैः त्रसप्राणिविवर्जितैः सप्राणिहिंसारहितैः रित्तैः धनः वृत्तिं जीविका कल्पयन्तः कुर्वन्तः विहरन्ति तिष्ठन्ति, ‘एए वि तावएवं इच्छंति, किमनपुण जे इमे समणोबासगा भवंति' एतेऽपि तावत् विशिष्ट योग्यता विकलाः गोशालकश्रावकाः एवम् अमुना प्रकारेण इच्छन्ति यदा धर्म वाञ्छन्ति तदा 'किमंग पुणजे इमे समणोवासगा भवंति' है:अङ्ग ! अङ्ग इति कोमलामन्त्रणे हे गौतम ! किमुत वक्तव्यं ये पुनरिमे अभिगतजीवाजीवाः उपलब्धपुण्यपापाः आसवसंवरनिर्जरणक्रिया अधिकरणवन्धमोक्षकुशला सुश्रावका: . पलाण्ड-प्याज, लहसुन, सूरण आदि कन्द और मूली इन सबको ये कभी भी अपने अहारके उपयोग नहीं लेते है। 'अणिल्ल छिएहिं अणक्कभिन्नहिं गोणेहिं तसपाणविवजिएहिं वित्तेहिं वित्तिं कप्पेमाणा विहरति । ये जिन बैलोंसे अपना व्यापार करते हैं-वे वधिया किये हुए नहीं होते हैं. नपुसक बनाये हुए नहीं होते हैं- और न उनकी नाक छेदकर इनमें नाथ डाली हुई होती है. जिस धन से ये अपना व्यापार चलाते है वह वन इनका श्रम जीवोंकी हिंसासे उपार्जित किया हुआ नहीं होता है। 'एए वि तोव एवं इच्छंति, किमंग पुण जे इमे समणोवासगा भवंति' विशिष्ट योग्यतासे विकल बने हुए ये गोशालक श्रावक जब इस प्रकारसे धर्मको चाहते हैं, तब हे अङ्ग-गौतम ! जो ये श्रमणोपासक हैं कि जिन्होंने जीव और अजीव तत्वोंको अच्छी तरहसे जान ડુંગળી, લસણુ, સૂરણ આદિ કંદ અને મૂળને તેઓ ખેરાક તરીકે ઉપયોગ કરતા નથી. 'अपिल्लंछिएहि अणक्कभिन्नेहि गोणेहिं तसपाणविवज्जिएहि वित्तेहिं वित्ति कप्पेमोणा विहरंति' तमारे मजह पार वगैरे ४२ छ, तमणहोने मस्सी बता નથી અને તેમના નાકમાં છિદ્ર પાડીને તેમને નાથવામાં આવતા નથી. તેઓ ત્રસજની હિંસા ६।२।लित ४२सा धनथी तभनी वेपार शमगार यावता नथी 'एए वि ताव एवं इच्छंति, किमंग पुण जे इमे समाणोवासंगा भवंति' विशिष्ट योग्यता सपन्न शासनात श्रापले धमनी रे. याड छे, तो अग! (गौतम) જીવ અને અજીવ તત્તવોને સારી રીતે જાણનારા, પુણ્ય અને પાપના સ્વરૂપને સમજનારા,
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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