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________________ ४७८ भगवतीमूने नाणी, अन्नाणी' हे भदन्त ! सयोगिनः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? भगवानाह-'जहा सकाइया' हे गौतम । यथा पूर्वोक्तकायद्वारे सकायिका भजनया पश्चज्ञानिनस्यज्ञानिनश्चोक्तास्तथा सयोगा अपि पञ्च ज्ञानिनस्त्र्यज्ञानिनश्च भजनया वक्तव्याः, “एवं मणजोगी, वइजोगी, कायजोगी वि, अजोगी जहा सिद्धा' एवं सयोगिवत् मनोयोगिनः, वचो योगिनः, काययोगिनोऽपि, भजनया पञ्च ज्ञानिनः, व्यज्ञानिनश्च विज्ञेयाः, केवलिनामपि मनोयोगादीनां सद्भावात, ते पञ्चज्ञानिनः, मिथ्यादृष्टीनां मनोयोगादिमतामज्ञानत्रयाभावाच्च, तेत्र्यज्ञानिन अयोगिनो जीवाः यथा सिद्धाः पूर्वमुक्तास्तथैव बोध्याः, हैं- 'सजोगीणं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी' हे भदन्त जो जीव योगसहित होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं, यो अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'जहा सकाइया' हे गौतम ! जिस प्रकार से पूर्वोक्त काय द्वार में सकायिक जीव भजना से पांच ज्ञानवाले और तीन अज्ञानवाले कहे गये हैं उसी तरह से यहां पर भी सयोगी जीव भी पांच ज्ञानवाले और तीन अज्ञानवाले होते हैं। 'एवं मणजोगी, वइजोगी, कायजोगी वि अजोगी जहा सिद्धा' सयोगीकी तरह मनोयोगीको, वचनयोगीको और काययोगी जीवोंको भजनासे पांच ज्ञानवाले और तीन अज्ञानवाले जोनना चाहिये । पांच ज्ञानोंकी और तीन अज्ञानोंकी भजना यहां पर इसलिये कही गइ है कि ये तीनों योग केवलियोंके भी होते हैं तथा मिथ्यादृष्टियोंके भी होते हैं । जो योगरहित होते हैं ऐसे अयोगी जीव जैसे सिद्ध एक केवलज्ञानरूप ज्ञानसे ज्ञानी होते हैं उसी तरहसे एक ज्ञान केवलज्ञानसे ही ज्ञानी होते हैं । अन्य ज्ञानोंसे नहीं । अब सूत्रकार तेरहवें हाय छ मज्ञानी हाय छ १ .:- 'जहा सकाइया', गौतम! नेश पाडता કાયદ્વારમાં સકાયિક જીવને ભજનાથી પાચ જ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા કહ્યા છે તેવીજ રીતે અહીંઆ પણ સંગી જીવને પાંચ જ્ઞાનવાળા અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા સમજવા. 'एवं मणजोगी, वइजोगी, कायजोगी वि अजोगी जहा सिद्धा' संयोगाना જેમજ મને યોગીને વચનગને અને કાયગી જીવોને ભજનાથી પાચ જ્ઞાન અને ત્રણ અજ્ઞાનવાળા ભજનાથી સમજવા પાચ જ્ઞાની અને ત્રણ અજ્ઞાનની ભજન અહીં એટલા સારૂ કહેવામા આવી છે કે ત્રણે એગ કેવળીઓને તથા મિથ્યા દષ્ટિઓ એ બંનેને હોય છે. જે વેગ રહિત હોય છે, તેવા અગી જીવ જેવી રીતે સિદ્ધ એક કેવળજ્ઞાનરૂપ જ્ઞાનથી જ્ઞાની હોય છે એ જ રીતે એક કેવળજ્ઞાનથી જ જ્ઞાની હોય છે
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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