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________________ प्रमेयचन्द्रिका टोका श. ८ उ. २ सू. १० लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४७७ अवधिज्ञानिनो भवन्ति, 'जे चउणाणी ते आभिणिवोद्दियनाणी जाव मणपज्जवनाणी' ये चतुर्सानिनस्ते आभिनिवोधिकज्ञानिना, यावत्-श्रुतज्ञानिनः, अवधिज्ञानिनः, मनःपर्यवज्ञानिनो वोध्याः, 'जे अन्नाणी ते नियमा तिअन्नाणी' ये अज्ञानिनस्ते नियमात् व्यज्ञानिनो वोध्याः-'तं जहा-मइअन्नाणी, सुय अन्नाणी, विभंगनाणी' तद्यथा-मत्यज्ञानिनः, श्रुताज्ञानिनः, विभङ्गज्ञानिनश्च, 'केवलदंसणअणागारोवउत्ता जहा केवलनाणलद्धिया' केवलदर्शनाऽनाकारोपयुक्ताः खलु जीवाः यथा केवलज्ञानलब्धिकाः एकज्ञानिनः केवलज्ञानिरूपाः पूर्वमुक्तास्तथा विज्ञेयाः, ___ अथ द्वादशयोगद्वारमाश्रित्य गौतमः पृच्छति-'सजोगी णं भंते ! जीवा किं नाणी' जो तीन ज्ञानवाले होते हैं वे आभिनिबोधिक ज्ञानवाले, श्रत ज्ञानवाले और अवधिज्ञानवाले होते है । 'जे चउनाणी, ते आभिणि बोहियनाणी, जाव मणपज्जवनाणी' जो इनमें चार ज्ञानवाले होते हैं वे आभिनिबोधिक (मतिज्ञान) से लेकर यावत् मनःपर्यय ज्ञानतकवाले होते हैं। जे अन्नाणी ते नियमा ति अन्नाणी' अवधिदर्शनरूप अनाकार उपयोगवालों में जो जीव अज्ञानी होते हैं. वे नियम से तीन अज्ञान वाले होते है- 'तं जहा' वे तीन अज्ञान ये हैं- 'मइ अन्नाणी, सुय अन्नाणी, विभंगनाणो' मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान, और विभंगज्ञान इन तीन अज्ञानयुक्त वे होते हैं। 'केवलदसण अणागारोवउत्ता जहा केवलनोणलद्विया' केवल दर्शनरूप अनाकार उपयोगवाले जीव केवलज्ञानलब्धिवाले जीवोंकी तरह एक केवलज्ञानवाले ही होते हैं। ___ अब बारहवे योगद्वारको आश्रित करके गौतमस्वामी प्रभुसे पूछते ओहियनागी' ने जानबाडाय छे तमा ममिनिमाधिज्ञान, श्रुनशान भने सपि. साना हाय छे 'जे चउनाणी ते आभिणिवोहियनाणी जाव मणपज्जवनाणी' તેઓમાં જે ચાર જ્ઞાનવાળા હોય છે તે અભિનિધિક (મતિજ્ઞાન) થી લઈને મન ૫ર્યવજ્ઞાન सुधाना शानवाजा जाय छ ‘जे अन्नाणी ते नियमा तिन्नाणी' पविशन३५ અનાકારપગવાળાઓમા જે જીવ અજ્ઞાની હોય છે તે નિયમથી ત્રણ અજ્ઞાનવાળા હોય છે. ' तजहा' ते अज्ञान या प्रभारी छ 'मइअन्नाणी सुयअन्नाणी, विभंगनाणी' भत्यज्ञान श्रुताज्ञान मन विल गजान मे व अज्ञानवापीय छ केवलदसणअणागारोवउत्ता जहा केवलनाणलद्धिया' AN३५ भानाशपयोगवा याने કેવળજ્ઞાન લબ્ધિવાળા ની માફક એક કેવળજ્ઞાનરૂપથી જ જ્ઞાની સમજવા. वे मारमा योगदान माश्रय ४शन प्रभुन गौरवामी ५ 'संयोगीणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' मात! २ ७३ योगाय हाय छे ते जानी
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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