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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ सू.८ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् मिथ्या - मिश्रश्रद्धानेषु अन्यतमोवश्यंभावात् 'सम्मदसणलद्धियाणं पंच नाणाइं भयणाए' सम्यग्दर्शनलब्धिकानां सम्यग्दृष्टीनां पश्चज्ञानानि भजनया भवन्ति, 'तस्स अलद्धियाणं तिम्नि अन्नाणाइं भयणाए' तस्य सम्यग्दर्शनस्य अलब्धिकानां मिथ्यादृष्टीना मिश्रदृष्टीनाञ्च त्रीणि अज्ञानानि भजनया भवन्ति, मिश्रस्य तात्विकसबोधजनकत्वामावेन मिश्रदृष्टीनामपि अज्ञानमेवेति भावः । गौतमः पृच्छति-'मिच्छादसणलद्धियाणं भंते ! पुच्छा ? हे भदन्त ! मिथ्यादर्शनलब्धिकाः खलु जोवाः किं ज्ञानिनः किंवा अज्ञानिनो भवन्ति ? इति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह- 'तिन्नि अन्नाणाई के कोई न कोई रुचि अवश्य होती हैं। अतः यहां ऐसा कहा गया है कि सामान्य रुचि रहित कोई भी जीव नहीं होता है। 'सम्मइंसणलद्धियाणं पंच नाणाइ भयणाए' जो जीव सम्यग्दर्शनलब्धिवाले होते हैं अर्थात् सम्यग्दृष्टि होते हैं उनको पांच ज्ञान भजनासे होते हैं। भजनासे किस प्रकारसे होते हैं यह बात ऊपर प्रकट की जा चुकी है। तस्स अलद्वियाणं तिन्नि अन्नाणाइं' जो सम्यग्दर्शनरूप लब्धि से रहित होते हैं अर्थात् सम्यग्दृष्टि नहीं होते मिथ्यादृष्टि होते हैं उनको तीन अज्ञान भजनाने होते हैं। इसी तरहसे मिश्रदृष्टियों को भी तीन अज्ञान सजनाले होते हैं। क्योकि जो मिश्र दृष्टि जीव होते हैं उनमें तात्विकबोध नहीं होता है अतः उनकी मिश्रदृष्टि तात्विक बोधकी जनकता के अभावसे अज्ञानरूप ही होती ह । अब गौतम प्रसुसे पूछते हैं 'मिच्छादसणलद्धिया णं भंते ! पुच्छा' हे भदन्त ! मिथ्यादर्शनलब्धिवाले जीव क्या ज्ञानी होते हैं ? या अज्ञानी होते हैं ? इसके उत्तरमें प्रभु कहते 'तिन्नि अन्नाणाई भयणाए' हे गौतम ! मिथ्यादर्शनलब्धिवाले जीवोंमें એટલે જ અહીં એવું કહેવામાં આવે છે કે સામાન્ય રુચિ રહિત કોઈપણ જીવ લેતા નથી 'सम्मदसणलद्धियाणं, पचनाणाई भयणाए' से ७१ सभ्यश नवाणा हाप छ તેઓને પાચ જ્ઞાન ભજનાથી હાય છે ભજનાથી કેવી રીતે હોય છે તે ઉપર પ્રકટ ४२वामा भावीछे 'तस्स अलद्धियाणं तिन्नि अनाणाई रेसम्यान३५ Auथा રહિત હોય છે. એટલે કે મિથ્યાષ્ટિરૂપ હોય છે તેઓને ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી હેય છે. એવી જ રીતે મિશ્રદષ્ટિવાળા ઓમા પણ ત્રણ અજ્ઞાન ભજનાથી હાય છે કેમકે જે મિશ્રદષ્ટિ डाय छे. तमाम तापि: माय डा। नया प्रश्न - ‘मिच्छादसणलद्धियाणं भंते पुच्छा' हे भगवान् । मिथ्यानि वा साना हाय छ । अज्ञानी डाय छ ? उत्तर - ‘तिनि अन्नाणाड भयणाए' गौतम ! भियान सम्पाणा
SR No.009316
Book TitleBhagwati Sutra Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1964
Total Pages811
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
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